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' के लोक साहित्य की एक भांखी"
" वागड़
नावरण वेला वेगं घेरे प्रावो रुड़ा राजवि हरियो राजवि साय
सोना जारि जल भरि घेरे आवो रुड़ा राजवि हरियो राजवि हाय
दातु वेला वैगै घेरे प्रावो रुड़ा राजवि हरियो राजवि हाय...... भोजन परुस्य एम रयँ घेरे प्रावो रुड़ा राजवि हरियो राजवि हाय हाय जम्मा वेला वैगै घेरे श्रावो रुड़ा राजवि हरियो राजवि हाय
हाय ढाला ढोलिडा एम रया घेरे आवो रुड़ा राजवि हरियो राजवि हाय..... हाय
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हाय
(xiii) वाड़ि मँय नो सॉप लियो कटावो रे साय केसरियो लाडलो, हाय सुगवाड़ा नो सुतारि तेड़ावो रे केसरिया ने पालकड़ि गड़ावो रे डोंगर पर नो रंगारि तेड़ावो रे पातलिया ने पालकड़ि रंगावो रे वाँसवाड़ा नो वणारि तेड़ावो रे केसरिया ने पालकड़ि बणावो रे पातलिया नि जाने सलावो रे केसरियो एरि जान में तो अमुक माइ श्रोसिला हाय केसरियो एणि जान में तो संपो भाइ एरि जान में तो अमुक भाइ मरँगा अमुक वौ नो सुड़िलो लुटॅणो रे
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लाड व नो फागणियो लुटॅणो रे
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हाय
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पातलियो
केसरियो
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पातलियो
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'हाय'
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हाय केसरियो लाडलो'
पातलियो
केसरियो
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'हाय'
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हाय
(४)
भजन
रोणिजा थकि रे जाणे बाबो आवियो अरजि ने पुसे से पुसण केनो रे वाज़ से अरजि दावड़ो केनि रे सारे से बाकरिये तो वाज़ों रे गुज़र दावड़ो भाबी मारि बकरिये सरावे
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