Book Title: Bagad ke lok Sahitya ki Zankhi
Author(s): L D Joshi
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 20
________________ ८५ आदिक रंबा रुपे कड़ा गुजरि बहु रंगरे । देवता में श्याम सोइ ॥ देवता में माव सोइ, तिरथ में माहि रे ॥ करो सादु प्रारति || जेना पिता पुरा गुरु सुरा सादु ने मल्या श्याम रे || दास जिवरण नि विनति रे ॥ तमे सुणिलो माराज रे ॥ सुणिलो श्री श्याम रे || करो सादु श्रारति ॥ X X Jain Education International X (८) लोक वार्ताएँ ( Folk tales.) 61 1 एक भ्रामण तो । पण्णि ने परदेस कमावा ग्यो । कमाइ धमाइ ने बार वरे घेरे पासो श्राव्यो । घेरे प्रावि ने सब ठिकठाक करि ने ने वड नुं श्राणु लेवा हरि-ग्यो । वाट में एक दोव बलंतु ऋतु ने प्रेरणा दोव में एक हाप पड़ा में बलतो ने बुम पाड़तो प्रतो । भ्रामण ने जोइ ने सापे क्यु के भाइ, मने बसाव । भ्रामण के के गुणना माइ श्रवगुण थाय ते तु मने खाइ जाय एटले श्रीं तो तने नें बसावं । सापे खौब कालावाला कर्या एटले भ्रामणे ने बांरतो काड्यो । बारते आवि ने साप के के न तो तने खो । भ्रामण के के बार वरे नो घेरे श्राव्यो सो ने मारे वो नुं प्राणु करवा जौ सौ । साप क्युके प्राण करि ने वलतो श्रावतारे खँ । भ्रामण सारे पुगो । आट दाड़ा र्यो पण अनपाणि नें भावे । ने साले पुस्यु के जिजाजि उदास केम रो सो ? भ्रामणे सब बात मांडने के सबलावि । साले क्यु के साप प्रजि बेटो नें प्रोवे, तमें सन्ता सोड़ि दो । प्राणु वदा कर्तुं ने भ्रामण ने ने वो सपना रापड़ा कने आव्यं के तरत साप आदि ने ग्राडो उबो यो । साप के वाट जोतों तो । श्रधे खौं । भ्रामण नि वौ तो पोक मेलि ने रोवा मांडि । साप के के तु सानि रे । खौब धन प्रय डाट्यु से ते लै जा ने आ बुटि से ते जे तने सताव वा सामु आवे ने डाड़ि देजे ते मसम थे जासे । प्रेम कँ ने जेवो साप भ्रामरण ने खावा ग्यो के तरत पेलि बाइये बुटि साप ने प्रडाड़ि दिदि । सांप तो तरत मसम र्थं ग्यो । भ्रामरण खौब राजि थ्यो ने घणि वौ बे घन ले ने घेरे श्राव्यं ने खाइ पी ने मज़ा कर्या !! कर्या पुढे नें करे ऐना गरु खोटा || 73 प्रा० डॉ. एल. डी. जोशी ( ii ) जेम तेम करि ने डोइए तर सें रुपिया बेटा नि सुगाइ बल्ले पड़ि । श्रेवामें मेलो भरातो प्रतो । बेटे क्यु के श्राइ मने तण रुपिया लैजा | बेटे तण रुपिया रेवा "एक डोइ ने एक जवान बेटो प्रतो । भेगा करि मेल्या अता । डोइ खाटला में माँदि पैसा आल ए मेलो जोइ श्रावु । डोइए क्युके तणसे में आ दिदा ने बिजा सब लै ग्यो । मेला में थकि एक सांप लिदो, एक (बिल्ली ) लिदि । घेरे प्रावि ने आइ ने रात करि तारे आइ तो तो देवलोक । एक दाड़ो साप के के मने मारे मां-बाप कने पण तु मारे बाप कने थकि श्रानि मुद्रिकास माँगजे । बेटो साप मे खुशि यँ ने लावनार ने मांगवा क्यु । पेले तो मुद्रिका मांगी। नाग के के तारेवति नें सँबालाय ने तु दुकि मेलवा ग्यो । साप नँ माँ- बाप खोब थे । पण पेलो एकनो बे ने थ्यो एटले मुद्रिका प्रालि दिदि ने क्यु के राज थे ने माइ तो घेरे श्राव्या 1 विवा नि तैनारि करि करे से । भाइ नाइ धोई ने तँ थे ने मॉडवा में बेटो ने मुद्रिका ने क्यु के देवलोक नि परि भावि जाय । खरे खर जे जुवे इ श्रा मुद्रिका तने आलसे माँडवो उगो ने भ्रांमरण बेटा ने पेलो For Private & Personal Use Only सुड़ो (पोपट) लिदो ने एक मनाड़ि साति कुटि ने रोइ । थोडँ दाड़ में डोइ रॉपड़ा में मेलि आव तने नेंयाल करसे । www.jainelibrary.org

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