Book Title: Bagad ke lok Sahitya ki Zankhi
Author(s): L D Joshi
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 14
________________ प्रो. डॉ. एल. डी. जोशी बापे एण ने बाणे सलाव्यं जाइ ने सोटये कासि-गड ने सोवटे कासि-गड नो भ्रामण अम बोल्यो भड़सि से सें कारणे अाव्या बावसि अमारे बालक बड़ वो लाडनो एने कासि-गड नि जनोड अनि गणि प्रोसे बड़ वा काने कड़ि माते धड़ि सोने जड़ि जाइ बेटा विराजि ने खोले सड़ि (भीलों के गीत ) (x) सुंदेडि तो भले रि प्रावि रे पावागड नि सुंदेडि प्रावि उतरि रामजि भाइ ने वेड रे पावागड नि सुंदेडि करो मारा रामजि विरा मुल रे , सुदेड़ ना सवा बे रोकड़ा रे , पेरो मारां मोति बाइ बुनां रे सुदेडि पेरों तो केड़ो भराय रे , मोडे तो पगल्यां रोलाय रे , घोवु तो दरियो रंगाय रे , जजड़ तो उडे जेणा मोर रे , , , x तु किम डरके रे (xi) मारो सांकलियालो कुपड़ो ठंकि आव, वाधज़ि मारो धुधरियालो जॉपो सड़ि प्राव, , तु आवे तो सानो-सानो प्राव, , मारो सासरो तो मोरां ने पड़साल, " मारि सासुड़ि तो , " " , " मारो परण्यो तो गदेड़ा गोवाल, , ( मृत्यु गीत : हरिया) (xii) दन उग्यो एम रयो घेरे प्रावो रुड़ा राजवि.........." हरियो राजवि हाय.........हाय ........हाय......... ! तांबा कुडि जल भरि धेरे प्रावोरूड़ा राजवि........ हरियो राजवि साय......."हाय......."हाय ........ ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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