Book Title: Bagad ke lok Sahitya ki Zankhi
Author(s): L D Joshi
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 5
________________ "वागड के लोक साहित्य की एक झांखी" ७३ और फिर माँ की सलाह से डूंगरपुर की ओर प्रस्थान किया। महारावल रामसिंह गलालेंग की बहन जी के पति होने से उसके सगे जीजाजी होते थे। रावल ने भी गलालेंग का स्वागत किया और ५० हजार की जागीर दे कर उपकृत किया और कहा सगवाड़े राज थारण राको ने गलिया कोट सौकि करो जिये पसलावे तमें मेडि माँडो ने मजूर नि रोटि जमो जिय" पचलासा में जीवा पटेल की जमीन छीन कर गलालसिंह ने अपना महल बनाया अत: जीवा पटेल उछाला भर कर कुवा के जागीरदार के पास जा बसा | कुवा के हतुमहाराज ने लालजी पंड्योर का पट्टा लेकर जीवा पटेल को दिया अतः लालजी पंड़योर उछाला भर कर डूगरपुर राज्य की सीमा छोड़कर कडाणा के ठाकुर कालु कडेणिया की शरण गया परंतु कालु से शतं ली कि वह कुवा पर आक्रमण करके उसके प्रति किये गये अन्याय का बदला लेगा। कडाणिया कालु ने यह मंजूर किया और जब दशहरे की सवारी में कूवा के ठाकूर हतमहाराज डंगरपुर राणा की नौकरी में गये हुए थे तो कडाणिया ने कुवा पर आक्रमण किया और मनिया डामोर तथा खेमजी खाँट आदि चौकीदारों को मारकर सारा ग्राम लूट लिया तथा बस्ती उजाड़ दी। यह समाचार डुगरपुर के दरबार में पहुँचाया गया तो गलालेंग यह सुनकर आगबबूला हो उठा और आक्रमण के लिए बेसब्र बन गया परंतु एक माह बाद सब सरदार सेना एकत्रित कर युद्ध को प्रस्थान करें, ऐसा निश्चय हा । गलालसेंग पछलासा आया तो उसे । "साज ने साँदरवाडॅ गामन बे जोड में नारेल माल्य जिय' राणि झालि ने राणि मेंगतरण पणवाने नारेल प्राव्यं जियें," माँ पियोली के मना करने पर भी गलालसिंह ने श्रीफल स्वीकार किये। माँ ने कहा 'गाम कडेंग जिति प्रावो ने बलता साजे परणो जियें' गलालेंग कहता है 'गाम कडॅणे काम प्रावं तो कोण हतिये बले जिय' । नारियल स्वीकार कर वह वनदेवी रावल रामेंग की मंजूरी लेने डूंगरपुर गया। रावल रामसिंह ने कहा । “नोव दाउं नि सुटि हालात में दसमें मेले प्रावो जिय इसमो सुकि इयारमो थावे तमे देसवटे जाजु जिय" अरमान भरा गलालेंग शूरवीर और पराक्रमी था, क्रोधी था, स्वाभिमानी था परंतु दिल से सरल, उदार, कर्तव्य परायण और प्रेमी तबियत का आदमी था । उसकी पहली पत्नी का स्वर्गवास हो चुका था-- "पेला फेरा ना परण्या गलालेंग ने देवदे सोड्या मोडे जियं, देवदा वाले देवलोक में प्रवे साजे परणवा जावें जिय" . अत: यह दूसरी बार बरात सजाई थी। लीलाधर घोड़े पर सवार होकर वह शादी को चला। मां ने उसे अनेकानेक श्राप और गालियाँ दी ! साजं सांदरवाउँ ग्राम में जब बरात पाई तो गलालेंग के रूप पर लोग प्राफिन हो गये। दोनों कुमारियाँ तो धन्य धन्य अनुभव करने लगीं। कामदेवता के समान स्वरूपवान गलालेंग की शादी और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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