Book Title: Ayurved Mahavir Author(s): Nemichand Pugaliya Publisher: Usha evam Mina View full book textPage 9
________________ लाभप्रदा अतिसार में, जैसे वटी कपूर महावीर की भक्ति से, मिलता लाभ जरूर १ पाकर अर्शकुठार रस, अर्श छोड़ता स्पर्श प्रभु ने हिंसा से किया, बहुत बड़ा संघर्ष २ अमर सुन्दरी कर रही, अपस्मार पर मार __ अन्ध रूढ़ियों पर किया, प्रभु ने प्रबल प्रहार ३ करता अग्निकुमार रस, पाचन क्रिया सुधार प्रभु की पूजा खोलती, ऋद्धि सिद्धि का द्वार ४ चर्मरोग उपशांति हित, लेते खदिरारिष्ट ___महावीर के नाम से, होते नष्ट अरिष्ट ५ हट जाती है अश्मरी, खा केले का क्षार लिए समन्वय के सुनो, सात्विक वीर-विचार ६ यथा मिटाता आफरा, चूरण पंचसकार महावीर प्रभु ने किया, प्रथम विनय स्वीकार ७ यथा सर्पगंधावटी, मिटा रही उन्माद अनेकान्त से मिट रहे, धार्मिक वाद-विवाद ८ हरता नित्यानन्द रस, कण्ठमाल का कष्ट प्रभु का सहजानन्द रस, स्फूर्ति दे रहा स्पष्ट ६ रक्तशोधकारिष्ट से, मिट जाता ज्यों कुष्ठ _प्रभु सेवा से क्यों नहीं, आत्मा हो संतुष्ट १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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