Book Title: Ayurved Mahavir
Author(s): Nemichand Pugaliya
Publisher: Usha evam Mina

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Page 15
________________ नागभस्म दिखला रही, अस्थिभंग पर रंग दिखलाता प्रभु को नहीं, अपना रंग अनंग ६१ रक्तस्राव को रोकती, जैसे भस्मअकोक धर्मस्राव को रोकती, महावीर की सीख ६२ लेता यहां जलोदरी, उत्तम रस क्रव्याद देता तप ऊनोदरी, ऊरोगता का स्वाद ६३ रस आरोग्यविधिनी, हरता यहां त्रिदोष सर्वदोषहर वीर का, संयममय उद्घोष ६४ क्या न कुमार्यासव कभी, हरता अन्त्र विकार महामंत्र नवकार में, चौदह पूर्वी सार ६५ फलघृत से मिटता यहां, नारी का वंध्यत्व लिए मुक्ति के योग्यता, देता है भव्यत्व ६६ हरती शिशुसंजीवनी, शिशुओं की हर व्याधि हरती प्रभु की जीवनी, जीवन की असमाधि ६७ चन्द्रकलारस जीतता, रक्तवमन से युद्ध चर्चा में वह हारता, जो हो जाए क्रुद्ध ६८ रक्षा करता गर्भ की, गर्भपालरस नित्य रक्षा करना जीव की, अपना पहला कृत्य ६६ कासकेसरीरस बिना, कास न होता नाश बिना बेदना धर्म पर, कब जमता विश्वास ७० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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