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कल्याणकघृत से यहां, मिटता भूतोन्माद
कल्याणक से वीर की, होती ताजा याद ८१ यहां कांगरणी तैल से, मिटता वात विकार
निर्विकारिता को करो, जीवन में स्वीकार ८२ ज्यों रहने देता नहीं, पुननर्वासव शोथ
- महावीर प्रभु ने किया, नूतन धर्मोद्योत ८३ क्षारतल से बधिरता, रहती नित भयभीत
महावीर के सामने, मार न पाता जीत ८४ सार्सापरिला से यहां, मिटता रक्त विकार ..
महावीर प्रभु चाहते, आत्मा पर अधिकार ८५ मूत्रदाह बहुमूत्र पर, लोध्रासव है पेय
होता है आदेय ही, सर्वकाल में श्रेय ८६ संधिशिथिलता के लिए, उत्तम लहशुनपाक
नहीं शिथिलता चाहते, भवसागर तैराक ८७ शिशु रोगों पर है नहीं, अरविन्दासव व्यर्थ
सच्चा और समर्थ है, सूत्र-सूत्र का अर्थ ८८ हितकर आहारान्त में, द्राक्षासव का पान
अतिहितकर प्राणान्त में, महावीर का ध्यान ८६ शांति दिमागी दे रहा, यहां तैल बादाम
शांति-प्रेम-सुख दे रहा, महावीर का नाम ६०
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