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लोहपर्पटी ले रहे, अगर आम अतिसार
महावीर प्रभु ने प्रथम, जीते मनोविकार ७१ स्मृतिसागररस दे रहे, जब होता स्मृतिभ्रंश
आत्माओं में सदृश हैं, चेतनता के अंश ७२ मिट जाता मोतीझरा, कर मृत्युञ्जय प्राप्त
महावीर मृत्युञ्जयी, हैं उपदेष्टा प्राप्त ७३ पुनर्नवामंडूर से, रुकती प्लीहावृद्धि
___ महावीर के चरण में, झुकती सारी ऋद्धि ७४ कफसंचय हरता यहां, यथा मल्लसिन्दूर
रहता है धन संचयी, श्रमणसंघ से दूर ७५ गोक्षुरादि गुग्गुल यहां, हरता मूत्राघात
शासनप्रेमी शिष्य कब, सहता सूत्राघात ७६ मिटता तालीसादि से, सास कास का कष्ट
चलता काल अनादि से, क्रम क्यों होगा नष्ट ७७ स्त्रियां प्रसूता ले रही, वर दशमूलारिष्ट
धर्म क्रियाएं दे रही, आत्मिक-शक्ति विशिष्ट ७८ ज्यों चन्द्रोदयतिका, हरती नेत्र विकार
महावीर की कीर्तना, करती बेड़ापार ७६ हरता हृद्दौर्बल्य ज्यों, यहां अर्जुनारिष्ट
दुर्बलता के कक्ष में, होते प्रभु न प्रविष्ट ८०
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