Book Title: Ayurved Mahavir
Author(s): Nemichand Pugaliya
Publisher: Usha evam Mina

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Page 18
________________ दर्द मिटाता दांत का जैसे तेल लवंग पाठ पढ़ाते शांति का उत्तम ग्यारह अंग ६१ कर्पूरासव कर रहा, विसूचिका का नाश प्रभु जाने से रोकते, विपदाओं के पास ९२ वमन रोकने के लिए, चूरण है एलादि महावीर प्रभु मानते, आत्मा तत्त्व अनादि ९३ करती मलहम व्यूचिहर, विचचिका का नाश प्रभु प्रभु प्रभु प्रभु बोलता, महावीर का दास ६४ निकट न जातिफलादि के, संग्रहणी का वास " निकट न त्यागी पुरुष के रहते भोग-विलास ६५ हो जाता कुटजादि से, पेचिस का प्राणान्त कार्मण के देहान्त को माना गया भवान्त ६६ उत्तम रस योगेन्द्र से भगा भगन्दर आप 1 महावीर योगेन्द्र से, डरते सारे पाप ६७ कर्ण रोग हरता यहां, श्रुद्ध तैल बिल्वादि महावीर प्रभु मानते, दृढ़ बन्धन स्नेहादि ६८ मानो इरिमेदादि से, से, मिटती मुख दुर्गन्ध महावीर प्रभु मानते, परिणामों से बन्ध ह कस्तूरीभैरव नहीं, सन्निपात का मित्र मित्र कौन किसका यहां, स्थितियाँ बड़ी विचित्र १०० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only १५ www.jainelibrary.org

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