Book Title: Ayurved Mahavir
Author(s): Nemichand Pugaliya
Publisher: Usha evam Mina
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003813/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PR Com आयुर्वेदमहावीर (सितोपलादि चन्द्रोदय । कामदुधारमा च्यवनप्राश) (फलघृत ( मुक्तापिष्टि) शिशुसंजीवनी अप्रकभरम) मकरध्वज पंचषकारचूर्ण पुनर्नवामडर सार्सापरिला (पुनर्नवासव । कपूरवटी (दशमूलारिष्ट लेखक नेमीचन्द पुगलिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Lavew.jainelibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-स्तंभनक पार्श्वनाथ स्तोत्र विषय-मंत्र औषधिभित प्रभु स्तुतिः भाषा--प्राकृत Jain Educationa International कर्ता-श्री जिनदत्त सूरि (बड़े दादागुरुदेव) रचनाकाल-१२वीं शताब्दी FIFFAREहो । For Personal and Private Use Only नियमविकारतानाशाजननहाविहानबाबकादयानकालगणवलनास्पकसानानदानमः १००पानसरसनावरदेवी दलाममा Fraas. HOM/MSमत्रगण नालम्लालानःनिमाधानातानाASHTRजाप२दमदम0SAमजलमालमत्रापाइयदा उजायचावविमानयादीSTERY नमानमराहनाममाममविपन पसभाओजमिव मकरजसुपरमतानविसरमविसघalaHARTलाकरजामिनामा S IL दानवानदाटनफावा माधमत्र मिन्नर्चिमकरदविनास्तिरिमुवावदादाकनवाला चारीमाजिनातनपाईयतनहाकालिमीमारिनaalsमममा पाल मलविमलसपना मारामारावा श्रीगुरुयनमःमुसासगादविवासिकथासियादगुरुपिया अरिघतणय२रमासश्मिघुणियाला हावा2-ta सकए।जामायणनडाँगामाणमाताभागावनियामनिदिईसखवासातामद्विपापामरकरिको मायावनिप्रायविसमा विदयाहालविमिझीयविद्याशी जुकारेहमहामणमालविसंधानासपमानावारिदिगृजाजागिजिवनजगमनसा aaaanRISEमत्रापा MASTERIकमुनाममा यामितपासादailसमातियलासधवमिरायातिदित्रामालविनिंबाबायाविमनस्नियामपकरदरतातहापामात asianमका समा नाममिक्षासुरगताaalaमाताविरत्नत्रयायायतश्याभालविद्यालस्वाद्यदायामिजियसप्पकरहरेशातदानामातपासासवादयरोफर ममाघहरबदमाशमामझायााजारामतकरवाटावातसादा विसंगलामूलाजबालिहाहाकरंतापानसिनामजाविउदंयामातचितम वादाविलमंत्री रममा दमानाधाया EMEसावा जुन्नरुतारन्यातावातसादाlaमानाकविवरवरवाहातहमापावादावनातसादााहारसपासादावजन्दना वाली लाऋजामत्रा सामगोलाबाहानुशतगत रसुवाहाanकामललिपपवादातदादातिदातमिरम्मावियामाहारकाऽanalaवाणवासामविल भवाघरमा दिनधिायमपि यामकाजमिश्राव्याऊपश्वाविनानिमावाणघानातायकीचा धजाडापामविगालाप्रबारजाणअदिशिगजा वटलनक विवाणानिराश्रामणामिलाजामुन्नानिदेशासवरअंजामुन्नासरावयू निवडाणबीरासावधानाहानत दम्बा हो हो काजआया ||हाम्हनामसलिमाजोगादारश्यान्नाविध्यारागाअनभूगगरायासनतरामामिदाफारिनदाइविभाविक तारणमत्रा। सुमाघालाबापत हालागलामलनलित Salaramanfसा॥१३॥मुगरपारिसिमुश्रवासाप्पुranaसुकालिमपाणिदिन्ना पिरिजवान शाजियसुहवाय 4मरजपालामुखमास्क fashरिवामपणेगातादाधानि:स्वादिदागवणक्वीश्रमामेश्नामंउदातदापासवितंपनियाणं नहानेस्टीसामिटातापिनिगामाथिका स्वीकरिस्वाद्याजितजलस्वारविanादेवापासुलापवाहापासतामतविरधाशनकवाकीमुवाहायमातुमाना तमाशालिवाया शानिएतादाद HTTARAHalfमकामासापामाताराकसतानिमतविजोलोजिदानामयतीजलवाखनलारपाजादायस्तताकतवाद्यालोरिस्वाहा फूलजान्नरयानाध्यमाणानिमश्चाधामससूर्यवान नाममावानमनापानाघनननामागरानावनालीवाठापमत्राकाहनिमश्रामीकामिनमुवारमंजताछ पानाम्पाकायतदेहरुकामाजमश्रीपाश्वनाघनवनामचितमादिarपदिणाटिमिनिस्करस्वाहाचार2saan१०४जलमत्रापाईपषताजसविनकतरजन aithilaR6AREEकदाकाम्पदामप्रमाणपत्रमातवमराजापशागुलमाध्यमूत्रनावकरोगकरदाजा के कागालादिनमतलवारायशापाकायापालन लगानाSHARE-VावाNEHaछापाकात्याम्नवायांकरमापकायातालमा १६ माइकलम Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गावटिम्बादासवाणदिनकादिला नायपकानामitanaशिकस्वाहारकहाधिऽभिरकमलेऽदिनताशवारराधिातः 111 माधवफाटसमाजागलादलिप्रसारममावालातलमुटाधमुबाधाय शोलावणकपरिमाग/itenायामतावा. अष्ट्रवादावार १०७हा मजाधशाकिमान तापतनादाटलानanaamलादगम्तममना गजल सुनामदाजाकिनादानामSRO IMGटकूवार पावरानमक नयमकपरिपक्कीस्वादावार बनायडवादलपमेनगाजरनामालभाचहीदर यसतहननाराबाजाराजगनाम0L1311 वादावादी निहलाजवंतवतेपासनविणेपानवामित्रमेअंजनदंसपणांमुहाअंतितापाणिपातपणेlshनिकाटितिटिस्वादामतिवामरामाशी विद्यारवाहातरमयनितिकमबिलानजिजामानिमतुम्हपासनामसझावजुवड्पादिश्रमामुवाहामुणाहमा हर२त्रमश्चकना बाबूपाणारागाष्ट्रवाहाहाघालताडयामाजिवतवपारमाकिनाजदिaिraliरागुवाहारदापरंथासिन्दा " रारदापसासभत्रश्मापारा ame स्वाहावार १० TOBानिमवलाइमलावगीलामपुन्नादरपासिदिन्नधातम्यपणाजवततपासनामMOIाजदादातायावऊफुटवलणन मंत्रीमा ताहरूवारणमाजिसाणाधलेलावालाहायस्तावनामाजलामिकायतजारवासायजिवापदादासुवादिकटकाकराहना दरगुणताघाला लगा जाम यमाताहरवाहिएदएषuniनिवाखामतनामावपिनालिलापासुहातमतिमाएअगाधिरात्रिएका भावामुवादिए शतितमरमघायाालिmanifaबुधामुकरमजरप्पासस्वादा||२|सयमतरजम्मन्नानंतणेवागुणि malएककटको गाया तालिबानिविगावर असतावराजदाळासिधापासात नवनामसिन्बानिवदारदिनमाविकासवाहात TRUTIतवाज, दाकरता परिवार दिपकैवातिकटटादार शकतंककटाहरदतदाघजापानाधmaryातarतपासमुदाayाजिदासयकाकामिनापालिक काडामूलाका isोधायचावासाधणगावकिमावादावापामयाजायातिवपासातनामिफायतिाला|ullaस्ममुरक करावासनावना नालापानतिन महाविणादिलिदिलिदिशातहासिबलगमसामनदाद)।२६ानझिलिमिलिनभितिबंदिमुरकाजमाता सुपादन दामनकरसतिशतदाददामणिसहिदि तिमवृक्षपासनाभलबुझिदिनामासमतसनादस्माइनस हिजमवलू परिवानिऊदि नईदुनियामावादासरaअमुवाहानुाधककमिलादीविष्यतिजिभदययातहावालु मोदिमागमतानविनाध्यविनायवतमरणदारमानवनिवनामउन्हामाणपासण्यापउम्॥२॥जिविको उन्नानवता १२नारायनकासुवादितनाकालादतावारवामभूमिययपदिताannवामालातकायाजादपा(मanनामला यsamunal कदादापत्रमादित्यवाहतूयेचवेशलघावाहाछनागुलावाजावाजमुवाहाकविरायांतनमविलयकामा Fिuपूवलामुक्राटदारा25.टालनमततकासामवजनमहायज्ञम्प.54 For Personal and Private Use Only मूलपत्राकृति-१०” २४३. ब्लॉकाकृति-६" x ३" । लेखनशैली-पंचपाठ टिप्पण भाषा-राजस्थानी लेखनकाल–१७वीं शताब्दी प्राप्ति सौजन्य-~-पुगलिया पुस्तकालय Jain Educationa International Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण-शताब्दी अन्तर्राष्ट्रीय महोत्सव आयुर्वेद - महावीर लेखक नेमीचन्द पुगलिया _ * प्रेरक डा० भंवरलाल नाहटा निर्देशक वैद्य प्यारे यति वैद्य लक्ष्मी चन्द्र यति प्रकाशक उषा एवं मीना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक का नाम - आयुर्वेद महावीर प्रकाशक - उषा एवं मीना प्रथम बार - १००० ( संवत् २०३१ ) मूल्य १=५० ( प्रतिशत - १२५= ००) लेखकाधीन लेखक - नेमीचन्द पुगलिया आमुख वैद्य सोहन लाल शर्मा निर्देशक वैद्य प्यारे यति वैद्य लक्ष्मीचन्द्र यति प्रेरक डा० भंवरलाल नाहटा मुद्रक - एजूकेशनल प्रेस, फड़ बाजार, बीकानेर प्राप्ति स्थान-(१) श्री रेखचंद जी बैद, पापड़ वाले दांती बाजार, बीकानेर (२) ज्योति मेडीकल स्टोर, भुजिया बाजार, बीकानेर (३) जेठमल जयकुमार पुगलिया, सुनारों की गली, ठठेरों की गुवाड़, बीकानेर -Oma Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रामुख श्री नेमीचन्द जी पुगलिया बीकानेर निवासी द्वारा सरल सुबोधगम्य पद्यों में रचित "आयुर्वेद महावीर" पुस्तक को देखने का अवसर मिला। पद्य की प्रथम पंक्ति में सरल हिन्दी में औषध का गुणधर्म वर्णन है तथा दूसरी पक्ति में श्री महावीर भगवान को स्मरण रखने का वर्णन है। लेखक का मुख्य उद्देश्य सरल चिकित्सा ज्ञान व श्री महावीर भगवान का स्मरण रखना है। ___ श्री पुगलिया जी ने इसके अतिरिक्त अनेक पुस्तकें और भी लिखी हैं । ये जिस लगन व निष्ठा से समाज सेवा करते आ रहे हैं उसे भुलाया नहीं जा सकता । समाज से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों के बीच श्रो पुगलिया जी विशेष लोकप्रिय हैं और सभी से आपका मधुर सम्पर्क है । आपका परिश्रम व प्रयास सराहनीय है। दिनांक २४-७-७४ -सोहनलाल शर्मा वैद्य जिला आयुर्वेद अधिकारी बीकानेर Jain Educationa International Jain Educationa International For Personal and Private Use Only For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनीयत औषधि और मंत्रों के चमत्कारों से जन मानस शीघ्र प्रभावित होता है । एतद् विषयक विधिवेत्ताओं के दर्शन सर्व सुलभ नहीं, महान दुर्लभ हैं। मंत्र और औषधियों के विधि-विधानों की गोपनीयता मानने वाले युग में श्री दादा गुरुदेव ने सर्वजन हिताय मंत्रौषधिभित 'स्तंभनक पार्श्वनाथ स्तोत्र' की रचना की। . स्तोत्रान्तर्गत पचीसवीं गाथा का टिप्पण कहता है-"श्वेत वांझिकंकोडीमूल एक वर्णी गाइना दूध सूपियइ तउ वंध्याइ गर्भ धरइ इम आसगंधि पुण ऋतुस्नान पूठई।" ___ तीसवीं गाथा का टिप्पण पढ़िए-ॐ क्रो स्वाहाः ।। ए मंत्र आदित्य वारइं भूर्यपत्र लिखी डावा हाथ नी अंगुली वींटी जीवा सूत्र सू वींटी करी पिहरायइ तउ सर्वत्र जय हुइ । रामति जीपइ । पूर्वला मंत्र सू अमृतन उं ७ वार गुणीयइ टीलउ प्रभाति कीजियइ सर्वजन मोहीयइ वस्य थाइ । विश्वास और सविधि सेवना आराधना के बिना औषधि, मंत्र और प्रभु की भक्ति ने किसे भी लाभ पहुँचाया हो, ऐसा ज्ञात नहीं है । मंत्र और औषधि विज्ञान के साथ धर्म और भक्ति को विलुप्त होने के दुर्दिनों का कहीं सामना न करना पड़े, अतः पुरातन पद्धति पर इस छोटी-सी नव्य कृति का निर्माण किया है। बीकानेर २१-७-७४ नेमीचन्द पुगलिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDYANA HWAloose + मंगलाचरणाम अतुलनीय को तोलना, दुस्साहस है एक क्षमा करो श्री वीर जिन !, मेरा यह अविवेक १ इस मिष से जिन भक्ति का, पुष्ट बनेगा अंग ___ मैंने अति प्राचीनतम, अपनाया है ढंग २ श्री दादा गुरुदेव कृत-प्राकृत स्तोत्र प्रमाण सुरभिगन्ध से तृप्ति का, अनुभव करते घ्राण ३ प्रात्म भवन स्थित वीर जिन !, भक्ति कीजिए पुष्ट नेमिचन्द्र की लेखिनी, बन जाये संतुष्ट ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाभप्रदा अतिसार में, जैसे वटी कपूर महावीर की भक्ति से, मिलता लाभ जरूर १ पाकर अर्शकुठार रस, अर्श छोड़ता स्पर्श प्रभु ने हिंसा से किया, बहुत बड़ा संघर्ष २ अमर सुन्दरी कर रही, अपस्मार पर मार __ अन्ध रूढ़ियों पर किया, प्रभु ने प्रबल प्रहार ३ करता अग्निकुमार रस, पाचन क्रिया सुधार प्रभु की पूजा खोलती, ऋद्धि सिद्धि का द्वार ४ चर्मरोग उपशांति हित, लेते खदिरारिष्ट ___महावीर के नाम से, होते नष्ट अरिष्ट ५ हट जाती है अश्मरी, खा केले का क्षार लिए समन्वय के सुनो, सात्विक वीर-विचार ६ यथा मिटाता आफरा, चूरण पंचसकार महावीर प्रभु ने किया, प्रथम विनय स्वीकार ७ यथा सर्पगंधावटी, मिटा रही उन्माद अनेकान्त से मिट रहे, धार्मिक वाद-विवाद ८ हरता नित्यानन्द रस, कण्ठमाल का कष्ट प्रभु का सहजानन्द रस, स्फूर्ति दे रहा स्पष्ट ६ रक्तशोधकारिष्ट से, मिट जाता ज्यों कुष्ठ _प्रभु सेवा से क्यों नहीं, आत्मा हो संतुष्ट १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहे, जैसे ज्वर पीड़ित जन ले भवपीड़ित भजते यहां पारदभस्म से, मिट जाता उपदंश होता प्रभु के नाम से, मिथ्याभ्रम का ध्वंस १२ दद्र दमन मलहम यथा, करती दद्र - विनाश क्षुद्र उपद्रव उठ नहीं सकते प्रभु के पास १३ केवल केलाहार से, मिटता भस्मक रोग करता प्रभु की भक्ति का, साधक सत्य प्रयोग १४ देते त्रिभुवनकीति रस, जब हो मातृ-प्रकोप महावीर का भक्ति रस, करता कोप - विलोप १५ मेदोवृद्धि मिटा रहा, ज्यों महासुदर्शन चूर्ण प्रभु सेवा संपूर्ण ११ मेदोहर अर्क मर्यादित जीवन जियो, यही वीर का तर्क १६ मधुमेहान्तक दे रहा, मधुमेही को शांति शांतिस्थापना के लिए, की थी प्रभु ने क्रांति १७ करता निद्रानाश पर, नित्योदय रस काम वैसे ज्ञान विनाश पर, महावीर का नाम १८ रक्त-पित्त का नाश करती पिष्टिप्रवाल की, प्रभु कहते पहले करो, अपने पर विश्वास १९ विषविकार हरता यथा, घृत का पय का पान भवविकार हरता तुरत, महावीर का ज्ञान २० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ७ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिल्ली तेल लगाइए, अगर जला दे आग भोग जलाने जब लगे, अपना लेना त्याग २१ इच्छा भेदी रस लिए, मिट जाता पानाह प्रभु पूजा का प्रण लिए, मिट जाता भवदाह २२ जयमंगल रस शत्र है, आमवात का खास __ परममित्र प्रभु वीर पर, कर रे मन ! विश्वास २३ कास मिटाने के लिए, चूरण है वासादि महावीर प्रभु ने कहा, नहीं जगत की आदि २४ कृमिनाशक माना गया, चूरण वायविडंग भ्रमनाशक माना यहां, प्रभुवर ने सत्संग २५ अरुचि मिटाने के लिए, शंखवटो तैयार द्वष मिटाने के लिए, बनिए आप उदार २६ दूर कर रही पीलिया, यथा भस्ममंडूर सही परिस्थिति को किया, प्रभुवर ने मंजूर २७ मिलती रससिन्दूर से, जीर्णज्वर में शांति मिलती प्रभु की भक्ति से, बहुत बड़ी विश्रान्ति २८ टिका राजयक्ष्मा नहीं, पंचामृत के पास भाग्य और पुरुषार्थ का, सधता साथ विकास २६ यवक्षार से हट रहा, मूत्रकृछ, का रोग दुःख हेतु माने गए, ये संयोग-वियोग ३० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम मुक्तापिष्टि से, चक्कर होते दूर प्रभु की करुणा-वृष्टि से, उगता ज्ञान जरूर ३१ मिटता रोग प्रमेह का, चन्द्रप्रभा से सद्य कटता बंधन स्नेह का, पढकर प्रभु के पद्य ३२ यथा अग्नितुडी वटी, करती अग्नि प्रदीप्त आत्मा को सज्ज्ञान से, करते रहिये तृप्त ३३ होती त्रिफलाचूर्ण से, नेत्रव्याधियां शान्त दिशाबोध प्रभु ने दिया, रहा न मन उद्भ्रान्त ३४ गंधकघृत से मिट रही, जैसे खुजली खाज प्रभु प्रवचन से उठ रही, सत्यभरी आवाज ३५ ब्राह्मीघृत से हो रही, स्मरण-शक्ति परिपुष्ट __ प्रभु प्रवचन से हो रही, चरणभक्ति परिपुष्ट ३६ प्रतिश्याय का शत्रु है, रसभैरव आनन्द महावीर प्रभु ने कहा, गति अवरोधक द्वन्द्व ३७ मकरध्वज पुरुषत्व की, औषधि यहाँ प्रधान महावीर पुरुषार्थ को, देते पहला स्थान ३८ गर्भवती स्त्री का गिना, गर्भपाल को मित्र महावीर प्रभु ने दिया, स्त्री को स्थान पवित्र ३६ क्षुधा जगाती आ रही, पीपल पय के साथ जगती जिज्ञासा नई, कर प्रभु का साक्षात ४० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोर पिच्छि की भस्म से, हिक्का होती बन्द ऐच्छिक धर्माचरण से, मिलता सहजानन्द ४१ गुटिका मृतसंजीवनी, हरती म्यादी ताव अमृतवाणी वीर की, भरती मन के घाव ४२ बलवर्धक माना गया, द्राक्षासव का पान महावीर के तीर्थ हैं, सुखवर्धक संस्थान ४३ अन्त प्रदर का कर रहा, यथा अशोकारिष्ट महावीर प्रभु को रहा, अन्त मोह का इष्ट ४४ यहां चन्दनासव यथा, हरता मूत्रविकार महावीर की वन्दना, करती बेड़ा पार ४५ च्यवनप्राश से हो रहा, जैसे कायाकल्प महावीर जिनकल्प का, कहते लाभ अनल्प ४६ कान्ति बढ़ाने के लिए, स्वर्णभस्म तैयार . शान्ति बढ़ाने के लिए, हुआ वीर अवतार ४७ वातगजांकुशरस यथा, हरता पक्षाघात महावीर करते नहीं, पक्षपात की बात ४८ लोकनाथरस से नहीं, रह सकता स्वरभेद महावीर प्रभु ने किया, भेदों का उच्छेद ४६ माना भास्करलवण को, अग्निमान्द्यहर चूर्ण प्रभु ने प्रवचन श्रवण को, माना सुखकर पूर्ण ५० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गर्भावस्था में सुखद, कहा सुपारीपाक सर्वावस्था में सुखद, माना पुण्य-विपाक ५१ बाल बढ़ाने लिए, भृगराज का तेल शक्ति बढ़ाने के लिए, रहते वीर अचेल ५२ वात मिटाने के लिए, है नारायण तेल साथ जुटाने के लिए, रहते सन्त सचेल ५३ दमा दिखाता दीनता, कनकासव के पास महावीर प्रभु को नहीं, देखा कभी उदास ५४ वातशूल नाशक यथा, है हिंग्वाष्टक चूर्ण __ जन्ममूल नाशक तथा, प्रभु पूजाष्टक पूर्ण ५५ चूरण सितोपलादि से, मिटता यहां जुकाम प्रभु सेवा भावादि से, नहीं सताता काम ५६ मिलती अभ्रक भस्म से, ज्ञानतंतु को शक्ति लिए मुक्ति के कीजिए, महावीर की भक्ति ५७ करती भस्मकपदिका, अम्लपित्त का नाश पूर्व जन्म पर वीर का, था पूरा विश्वास ५८ पुंसकत्व देती यहां, जैसे भस्मत्रिबंग चढ़ा हुआ था वीर पर, अलिंगता का रंग ५६ शक्ति मानसिक दे रही, कामदुधा ज्यों शुद्ध । होती है वोरार्चना, दुर्बलता पर क्रुद्ध ६० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागभस्म दिखला रही, अस्थिभंग पर रंग दिखलाता प्रभु को नहीं, अपना रंग अनंग ६१ रक्तस्राव को रोकती, जैसे भस्मअकोक धर्मस्राव को रोकती, महावीर की सीख ६२ लेता यहां जलोदरी, उत्तम रस क्रव्याद देता तप ऊनोदरी, ऊरोगता का स्वाद ६३ रस आरोग्यविधिनी, हरता यहां त्रिदोष सर्वदोषहर वीर का, संयममय उद्घोष ६४ क्या न कुमार्यासव कभी, हरता अन्त्र विकार महामंत्र नवकार में, चौदह पूर्वी सार ६५ फलघृत से मिटता यहां, नारी का वंध्यत्व लिए मुक्ति के योग्यता, देता है भव्यत्व ६६ हरती शिशुसंजीवनी, शिशुओं की हर व्याधि हरती प्रभु की जीवनी, जीवन की असमाधि ६७ चन्द्रकलारस जीतता, रक्तवमन से युद्ध चर्चा में वह हारता, जो हो जाए क्रुद्ध ६८ रक्षा करता गर्भ की, गर्भपालरस नित्य रक्षा करना जीव की, अपना पहला कृत्य ६६ कासकेसरीरस बिना, कास न होता नाश बिना बेदना धर्म पर, कब जमता विश्वास ७० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहपर्पटी ले रहे, अगर आम अतिसार महावीर प्रभु ने प्रथम, जीते मनोविकार ७१ स्मृतिसागररस दे रहे, जब होता स्मृतिभ्रंश आत्माओं में सदृश हैं, चेतनता के अंश ७२ मिट जाता मोतीझरा, कर मृत्युञ्जय प्राप्त महावीर मृत्युञ्जयी, हैं उपदेष्टा प्राप्त ७३ पुनर्नवामंडूर से, रुकती प्लीहावृद्धि ___ महावीर के चरण में, झुकती सारी ऋद्धि ७४ कफसंचय हरता यहां, यथा मल्लसिन्दूर रहता है धन संचयी, श्रमणसंघ से दूर ७५ गोक्षुरादि गुग्गुल यहां, हरता मूत्राघात शासनप्रेमी शिष्य कब, सहता सूत्राघात ७६ मिटता तालीसादि से, सास कास का कष्ट चलता काल अनादि से, क्रम क्यों होगा नष्ट ७७ स्त्रियां प्रसूता ले रही, वर दशमूलारिष्ट धर्म क्रियाएं दे रही, आत्मिक-शक्ति विशिष्ट ७८ ज्यों चन्द्रोदयतिका, हरती नेत्र विकार महावीर की कीर्तना, करती बेड़ापार ७६ हरता हृद्दौर्बल्य ज्यों, यहां अर्जुनारिष्ट दुर्बलता के कक्ष में, होते प्रभु न प्रविष्ट ८० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याणकघृत से यहां, मिटता भूतोन्माद कल्याणक से वीर की, होती ताजा याद ८१ यहां कांगरणी तैल से, मिटता वात विकार निर्विकारिता को करो, जीवन में स्वीकार ८२ ज्यों रहने देता नहीं, पुननर्वासव शोथ - महावीर प्रभु ने किया, नूतन धर्मोद्योत ८३ क्षारतल से बधिरता, रहती नित भयभीत महावीर के सामने, मार न पाता जीत ८४ सार्सापरिला से यहां, मिटता रक्त विकार .. महावीर प्रभु चाहते, आत्मा पर अधिकार ८५ मूत्रदाह बहुमूत्र पर, लोध्रासव है पेय होता है आदेय ही, सर्वकाल में श्रेय ८६ संधिशिथिलता के लिए, उत्तम लहशुनपाक नहीं शिथिलता चाहते, भवसागर तैराक ८७ शिशु रोगों पर है नहीं, अरविन्दासव व्यर्थ सच्चा और समर्थ है, सूत्र-सूत्र का अर्थ ८८ हितकर आहारान्त में, द्राक्षासव का पान अतिहितकर प्राणान्त में, महावीर का ध्यान ८६ शांति दिमागी दे रहा, यहां तैल बादाम शांति-प्रेम-सुख दे रहा, महावीर का नाम ६० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर्द मिटाता दांत का जैसे तेल लवंग पाठ पढ़ाते शांति का उत्तम ग्यारह अंग ६१ कर्पूरासव कर रहा, विसूचिका का नाश प्रभु जाने से रोकते, विपदाओं के पास ९२ वमन रोकने के लिए, चूरण है एलादि महावीर प्रभु मानते, आत्मा तत्त्व अनादि ९३ करती मलहम व्यूचिहर, विचचिका का नाश प्रभु प्रभु प्रभु प्रभु बोलता, महावीर का दास ६४ निकट न जातिफलादि के, संग्रहणी का वास " निकट न त्यागी पुरुष के रहते भोग-विलास ६५ हो जाता कुटजादि से, पेचिस का प्राणान्त कार्मण के देहान्त को माना गया भवान्त ६६ उत्तम रस योगेन्द्र से भगा भगन्दर आप 1 महावीर योगेन्द्र से, डरते सारे पाप ६७ कर्ण रोग हरता यहां, श्रुद्ध तैल बिल्वादि महावीर प्रभु मानते, दृढ़ बन्धन स्नेहादि ६८ मानो इरिमेदादि से, से, मिटती मुख दुर्गन्ध महावीर प्रभु मानते, परिणामों से बन्ध ह कस्तूरीभैरव नहीं, सन्निपात का मित्र मित्र कौन किसका यहां, स्थितियाँ बड़ी विचित्र १०० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only १५ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मतियां सुश्रावक कवि श्री नेमीचन्द जी पुगलिया के लेखन और संपादन से मैं जितना प्रभावित हूं उससे अधिक उनके मधुर और सरल व्यवहार से प्रभावित हूं। आपकी होमियो महावीर, आयुर्वेद महावीर, प्राकृतिक महावीर और ज्योषित महावीर नाम की चारों पुस्तकें नूतन शैली के साथ उपयोगी होते हुए भगवान महावीर के प्रति आंतरिक भक्ति का अनुपम उदाहरण मैं आशा कर सकता हूं कि कवि श्री पुगलिया जी की कृतियां आरोग्य और बोधिलाभ देने वाली सिद्ध हों। उपप्रवर्तक, कविरत्न चन्दन मुनि (पंजाबी) कवि श्री नेमीचन्द जी पुगलिया कृत प्रस्तुत रचना को देखा, पढ़ा। पुरातन रचना-पद्धति को पुनरुज्जीवित करने वाली यह रचना वर्तमान-युग को आकर्षित करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। प्रस्तुत पुस्तक नव्य और भव्य होने के साथ-साथ मननीय, पठनीय संग्रहणीय और प्रचारणीय है । -उपाध्याय, दर्शन सागर बीकानेर २६७-७४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक की प्रकाशित रचनाएँ 1. सुनहरी उक्तियाँ 2. लहरे 3. संबल 4. जवाहरात 5. सारांश 6. दादा चतुष्टयी 7. होमियो महावीर 8. आयुर्वेद महावीर 6. प्राकृतिक महावीर 10. ज्योतिष महावीर लेखक की सम्पादित रचनाएँ 1. संगीत भगवान पार्श्वनाथ उपप्रवर्तक, कविरत्न " श्री जम्बूकुमार " श्री मेघकुमार महासती चंदनबाला " महासती मदनरेखा श्री धन्नाशालिभद्र इषुकार कथा " सती सुर सुन्दरी 6. " संगीतों की दुनिया 10. बारह महीने 11. विश्व ज्योति महावीर (काव्य) श्री गणेश मुनि शास्त्री' 12. श्रमण संस्कृति के 2500 स्वर (दोहे) मुनि श्री महेन्द्रकुमार 'कमल' 13. प्यासे स्वर (कविताए) Muji For Personal and Private Use Only