SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रहे, जैसे ज्वर पीड़ित जन ले भवपीड़ित भजते यहां पारदभस्म से, मिट जाता उपदंश होता प्रभु के नाम से, मिथ्याभ्रम का ध्वंस १२ दद्र दमन मलहम यथा, करती दद्र - विनाश क्षुद्र उपद्रव उठ नहीं सकते प्रभु के पास १३ केवल केलाहार से, मिटता भस्मक रोग करता प्रभु की भक्ति का, साधक सत्य प्रयोग १४ देते त्रिभुवनकीति रस, जब हो मातृ-प्रकोप महावीर का भक्ति रस, करता कोप - विलोप १५ मेदोवृद्धि मिटा रहा, ज्यों महासुदर्शन चूर्ण प्रभु सेवा संपूर्ण ११ मेदोहर अर्क मर्यादित जीवन जियो, यही वीर का तर्क १६ मधुमेहान्तक दे रहा, मधुमेही को शांति शांतिस्थापना के लिए, की थी प्रभु ने क्रांति १७ करता निद्रानाश पर, नित्योदय रस काम वैसे ज्ञान विनाश पर, महावीर का नाम १८ रक्त-पित्त का नाश करती पिष्टिप्रवाल की, प्रभु कहते पहले करो, अपने पर विश्वास १९ विषविकार हरता यथा, घृत का पय का पान भवविकार हरता तुरत, महावीर का ज्ञान २० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ७ www.jainelibrary.org
SR No.003813
Book TitleAyurved Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Pugaliya
PublisherUsha evam Mina
Publication Year1975
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy