Book Title: Ayurved Mahavir Author(s): Nemichand Pugaliya Publisher: Usha evam Mina View full book textPage 8
________________ INDYANA HWAloose + मंगलाचरणाम अतुलनीय को तोलना, दुस्साहस है एक क्षमा करो श्री वीर जिन !, मेरा यह अविवेक १ इस मिष से जिन भक्ति का, पुष्ट बनेगा अंग ___ मैंने अति प्राचीनतम, अपनाया है ढंग २ श्री दादा गुरुदेव कृत-प्राकृत स्तोत्र प्रमाण सुरभिगन्ध से तृप्ति का, अनुभव करते घ्राण ३ प्रात्म भवन स्थित वीर जिन !, भक्ति कीजिए पुष्ट नेमिचन्द्र की लेखिनी, बन जाये संतुष्ट ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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