Book Title: Avashyakasutram Part_3 Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri, Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 9
________________ रज्जं, तस्स य बारससंवच्छरिओ अभिसेओ, सो य कप्पडितो तत्थ अल्लियावंपि न लहइ, तओ णेण उवाओ चिंतितोउवाहणाओ घए बंधिऊण धयवाहगेहिं समं पधावितो, रण्णा दिट्ठो, उन्नेणं अवगूहितो, अण्णे भणंति-तेण दारवाले | सेवमाणेण बारसमे संबच्छरे राया दिट्टो, ताहे राया तं दट्ठण संभंतो, इमो सो वनगो मम सुहदुक्खसहायगो, एसाहे करेमि वित्ति, ताहे भणइ - किं देमो १, सो भणइ-देह घरे घरे करचोलए जाव सबंमि भरहे, जाहे निट्ठियं होज्जा ताहे पुणोऽवि तुज्झ घरे आढवेऊण भुंजामि, राया भणइ - किं ते एएण ?, देसं ते देमि तो सुहं छत्तछायाए हत्थिखंधवरगतो हिंडिहिसि, सो भणइ- किं मम एद्दहेण आहट्टेण ?, ततो से दिण्णतो चोलगो, ताहे पढमदिवसे राइणो घरे जिमितो, | तेण से जुयलयं दीणारो य दिन्नो, एवं सो परिवाडीए सबेसु राउलेसु बत्तीसाए रायवरसहस्सेसु तेसिंपि जे भोइया तप्पभिईसु, तत्थ य नगरे अणेगातो कुलकोडीतो, ततो से नगरस्स कया अंतं काहिइ ?, ताहे गामाण, ततो भरहवासस्स, अवि सो वच्चेज अंतं न य माणुसत्तणातो भट्ठो पुणो माणुसत्तणं लहइ १ ॥ पासत्ति द्वितीयो दृष्टान्तः, चाणक्कस्स मुवणं नत्थि, ताहे चिंतेइ केण उवाएण विवेजा सुवण्णं १, ततो जंतपा| सा कया, केई भांति - वरदिष्णगा, ताहे एगो दक्खपुरिसो सिक्खावितो, दीणाराणं धालं भरियं, सो भणइ - जइ ममं कोई | जिणइ सो थालं गेण्हर, अह अहं जिणामि तो एगं दीणारं, तस्स इच्छाए जंतं पडइ, ततो न तीरए जिणिउं, जहा सो न जिप्पइ एवं माणुसलंभोऽवि दुल्लहो, अवि नाम सो जिणेज्जा न य माणुसत्तणाओ भट्ठो पुणो माणुसत्तणं लभइ २ ॥ 'धन्न'त्ति तृतीयो धान्यदृष्टान्तः, जत्तियाणि भरहखेत्ते धन्नाणि ताणि सबाणि पिंडियाणि, तत्थ पत्यो सरिसवाणं छूढो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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