Book Title: Avashyakasutram Part_3
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 14
________________ श्रीयावक्यकमलय. वृत्ती उपोद्घाते कथंद्वारे युगहष्टान्तः युगहि सामिला मुवयाभरमणसमुद्रे इमीमति युगे युगलिने या माणसाओ मञ्च मानुष्यात्-मा ॥४५४॥ KASKRISRAERARE नवमो युगदृष्टान्तः, तत्प्रतिपादनार्थमाहपुवंते होज जुर्ग अवरंते तस्स होज समिला उ । जुगछिइंमि पवेसो इय संसइओ मणुयलंभो ॥ ८३३ ॥ स्वयम्भूरमणाख्यस्य जलनिघेः पूर्वान्ते युगं भवेत् , अपरान्ते तस्य युगस्य भवेत् समिला, एवं व्यवस्थिते सति यथा| युगच्छिद्रे समिलायाः प्रवेशः संशयित इति एवं संशयितो मनुजलाभ:-मनुष्यत्वलाभः, दुर्लभ इत्यर्थः । जह समिला पन्भट्ठा सागरसलिले अणोरपारंमि ।पविसिजा जुगछिडु कहवि भमंती भमंतंमि ॥८३४॥ यथा सागरसलिले स्वयम्भूरमणसमुद्रे इमीसे(मा सा)अणोरपारंमित्ति देशीवचनं प्रचुरार्थे उपचारत आराद्भागपरभागरहिते | युगात् समिला प्रमृष्टा घमन्ती कथमपि धमति युगे युगच्छिद्रे प्रविशेत् एवं मानुषत्वात् प्रभृष्टः कथमपि मानुषत्वं लभते । सा चंडवायवीईपणोल्लिया अवि लभेज जुगछिडूं।नय माणुसाओ भट्ठो जीवो पडिमाणुसं लभइ ॥८३५।।। सा समिळा चण्डवातवीचिप्रेरिता सती अपिः संभावने लभते युगच्छिद्रं, न च मानुष्यात्-मानुषत्वात् परिभृष्टो जीवः। प्रतिमानुष्य-भूयो मनुजत्वं लभते इति ९॥ दशमः परमाणुदृष्टान्तः-जहा एगो खंभो महप्पमाणो, सो देवेण चुण्णिऊण अविभागिमाणि खंडाणि कतो, ततो नलियाए| पकिनचो, पच्छा मंदरचूलाए ठिएण फूमिओ, ताणि अविभागिमाणि खंडाणि नट्ठाणि, अत्यि पुण कोई जो तेहिं चेव पुगळेहिं तमेव खंमं निवत्चेन्जा', एस अभावो, एवं माणुसत्तणाओ भट्ठो जीवो नो पुण पाएण माणुसत्तणं लहइ ॥ अहवा इमो परमाणुदितो-समा अणेगसंभसयसण्णिविट्ठा, सा कालंतरेण झामिया पडिया, अत्थि पुण कोई जो तेहिं चेव CALCCAREES ४५४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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