Book Title: Avashyakasutram Part_3
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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पुग्गलेहिं करेइ ?, नो इणमटे समढे, एवं माणुसत्तणं दुल्लहं,१०॥ दस दिटुंता मणुयलंभेति एते दश दृष्टान्ता मानुष्यलाम।।
इय दुल्लहलंभं माणुसत्तणं पाविऊण जो जीवो। न कुणइ पारत्तहियं सो सोयह संकमणकाले ॥८३६॥ el एवं-उतप्रकारेण मानुषत्वं दुर्लभलाभ प्राप्य यो जीवः परत्रहितं धर्म न करोति, पारतत्ति दीर्घत्वमलाक्षणिकं, स संक्रमKणकाले-मरणकाले शोचति-शोकं करोति ॥ क इवेत्याह
जह वारिमज्झ छूढोच गयवरो मच्छउच्च गलगहिओ। वग्गुरपडिओ य मओ संवइओजहा पक्खी ॥८३७॥
सो सोयइ मजुजरासमुच्छुओ तुरियनिहपकिखत्तो । तायारमविंदतो कम्मभरपणोल्लितो जीवो ॥ ८३८॥ I ययेत्युपप्रदर्शने, यथाशोचति तथा दर्यत इति भावः, वारिमध्यक्षिप्तो गजवरो, मत्स्य इव वा गलगृहीतः, यदिवा मृग इव वा वागुरापतितः, संवत-जालं तमितः-प्राप्तो यथा वा पक्षी, 'सो सोयई' इत्यादि, सोऽकृतपुण्यः मृत्युजरासमवस्तृतःमृत्युजराकान्तः त्वरितनिद्राप्रक्षिप्ता-मरणनिद्रया अभिभूतःत्रातारम् अविंदान:-अलभमानः कर्मभरप्रणोदितः-कर्मभरप्रेरितो जीवः-शोचति, ही न कृतं किमपि जन्मान्तरसुखनिबन्धनं सुकृतमिति शोकं करोति ॥ सचेत्यं मृतः सन् काऊणमणेगाई जम्ममरणपरियणसयाई। दुक्खेण माणुसत्तं जइ लहइ जहिच्छियं जीवो ।। ८३९॥
कृत्वा अनेकानि जन्ममरणपरिवर्तनशतानि दुःखेन महता कष्टेन यदि कथमपि लभते जीवो मानुषत्वं, कुशलपक्षकारी पुनः सुखेन मृत्वा सुखेनैव लभते मानुषत्वम् ॥ । तं तह दुल्लभलंभ विजुलयाचंचलं च मणुयत्तं । लण जो पमायइ सो काउरिसोन सप्पुरिसो॥८४०॥
SECORRECASSACRy.
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