Book Title: Avashyakasutram Part_3
Author(s): Bhadrabahuswami, Malaygiri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 10
________________ श्रीआवश्यकमलय० वृत्ती उपोद्घाते ॥४५२॥ ताणि सबाणि अयालियाणि, तत्थेगा जुण्णथेरी सुष्पं गहाय वीणेजा, सा किं पुणोऽवि पत्थर पूरे चएज्जा', अवि साकार देवयापसाएण पूरिजा, न य माणुसत्तणातो भट्ठो जीवो पुणो माणुसत्तणं लहइ ३॥ चोल्लकादि__ 'जूए'त्ति द्यूतदृष्टान्तश्चतुर्थः, स एवं-एगो राया, तस्स सभा खंभसयसंनिविट्ठा, तत्थ अत्याणियं देइ, एक्केक्को यह दृष्टान्ताः खंभो अट्ठसयंसितो, तस्स रन्नो पुत्तो रजकंखी, चिंतेइ-थेरो राया मारेऊण रज गिण्हामि, तं च अमच्चेण नायं, तेण रन्नो सिटुं, ततो राया तं पुत्तं सद्दावित्ता भणइ-अम्हं जो न सहइ अणुक्कम सो जूयं खिल्लइ, जइ जिणइ रजं से दिजइ, किह पुण जिणियवं!, तुझं एगो आओ, अवसेसा आया अम्हं, जइ तुमं एगेण आएणं सययपयत्तेणं अट्ठसयस्स खंभाणमेक्केक्कं अंसियं अट्ठसए वारा जिणसि तो तुज्झ रज, अवि देवया० विभासा ४॥ __ 'रयणे'त्ति पञ्चमो रत्नदृष्टान्तः, स चैवं-एगो वाणियगो वुड्डो, रयणाणि से अस्थि, तत्थ य महे महे अण्णे वाणियगा कोडिपडागाओ उन्भेति, सो न उब्मेति, तस्स पुत्तेहिं थेरे पउत्थे ताणि रयणाणि नाणादेसियवाणियहत्थे विक्कीयाणि, वरं अम्हेवि कोडिपडागा उन्भवेमो, ते य वाणियगा समंतओ पडिगया पारसकूलादीणि, थेरो आगतो, सुयं जहा विक्कीयाणि, ततो ते अंबाडेइ-लहु रयणाणि आणेह, ताहे ते सबतो हिंडिउमारद्धा, किं ते सघरयणाणि पिंडिजा? अविय देवयापभाषेण विभासा ५॥ ॥४५॥ षष्ठः स्वप्नदृष्टान्तः, स चैव-एगेण कप्पडिएण सुमिणए चंदो गिलिओ, तेण कप्पडियाण कहियं, तेहिं भणियं-संपुण्ण-I में चंदमंडलप्पमाणं पूयलियं अज भिक्खापविट्ठो लब्भिहिसि, लद्धो व घरच्छायणियाए, अण्णेणवि दिछो तारिसो चेव सुमिणो, Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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