Book Title: Atmanand Prakash Pustak 017 Ank 12
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
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પંદરમી સદીમાં બોલાતી ગુજરાતી ભાષા.
૩૧૯ "जु तपोलब्धिकरि अष्टापदि चडी ऋषभ जिनरहइं वंदइ सु चरमसरीरी तिणिहि जि मुक्तिगामी हुयइ । तउ जेतलई अष्टापद यात्रामनोरथु गौतम स्वामि मनमाहि करइ तेतलई भगवंति यात्रा विषइ आदेसु दीधउ । तउ गौतमु अष्टापदि चालिउ । जिनवचनु पूर्व भणितु सांभली करी अने राई कोडिन्य दिन्न सेवालि नाम पांच पांच सई तावसु मुक्ति निमितु तिहां चालिया ॥ तीहंमाहि कौडिन्यु कुलपति पांचसई तापस सहितु एकोपवास करी पारणइ आर्द्र मूल फलाहारी पहिली मेखला गयउ । दिन्नु कुलपति पांचसई तापससहितु बिउं उपवास करी पारणइ शुष्क मूल फलाहारी बीजी मेखला चडिउ । सेवाली कुलपति पांचसई तापस सहितु त्रिउं उपवास करी शुष्क सेवालहरी त्रीजी मेखला गयउ । त्रि कुलपति ऊपहरा चडिवा असकता हूंता पूर्विहिं तिहाइ जिरहिया छई। तीहं रहई तिहां रहिया हूंतां श्री गौतमस्वामि मूर्तिमंतु जिसउ पुण्यरासि हुयइ तिसउ उपचित सर्वदेहावयq कायकांतिकरी दीपितदसदिसावकासु आविउ । ति तापस सवइ गौतमरहई देखी करी चित्ति चीतवई-अम्हे तपि करि सोसियकाय इहां चडी नही सकता एउ इसउ उपचिति देहि करी यथा कामभोजी संभावीतउ किसी परि चडिसि । इसउं तीहं त्रिहुं तापसहरहई चीतवता हूंतां श्री गौतम गणनायकु रवि किरण अवलंबी करी अष्टापदि पर्वति चडिउ । तीहं नइ मनि महांत विस्मउ ऊपनउं । तर पाछइ मनमाहि चतिवई जइ किमहि पाछउ वलतउ अम्ह माहि . आविसिइ तउ अम्हे एहना शिष्य होइ सिउं । x x x
बीजइं दिनि प्रभातसमइ पुनरपि चउवीस जिन वांदी करी श्री गौतमस्वामि तिणिहि जि मागि आवतउ इंतउ तापसह माहि आविउ । तापसे वांदी करी वीनविउ भगवान् पसाउ करी अम्हरहई दीक्षा दिउ । गौतमस्वामि योग्यता जाणी करी सवेदीखिय।। पारणावसरि पूछिवा वछउ ! किसी इच्छा तुम्हरहई छइ । तेहे चितवीउ अम्हारी आंत्र मुखकरी दाघी छई जइ मागिउं भोजनु लाभइ तउ मनोवांछितु कांइ न मागियई इसरं चतिवी करी परमानभोजनु मागिउं । श्री गौतमस्वामि पात्र प्रतिलेखना पूर्व लेकरी विहरिवा पहु तउ किण हिं निवसि कुणही कुटुंबी तणइ आपणइ भावि परमान नीपनउ हु तउं ते तले प्रस्तावि तेहतरणइ धरि श्री गातेमस्वामि श्राविउ तिणि कुटुंबी आपण धन्यु मानत नइ भाविकरी श्री गौतमु परमान्नु पात्रपूरि विहराविउ । खीरि
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