Book Title: Atmakatha
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

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Page 7
________________ प्रस्तावना चार-पांच साल पहले, अपने नजदीक साथियोंके प्राग्रहसे, मैंने 'आत्मकथा' लिखना मंजूर किया था और शुरूआत भी कर दी थी। परंतु एक पृष्ठ भी न लिख सका था कि बंबई में दंगा हो गया, और ग्रागेका काम जहां का तहां रह गया । उसके बाद तो मै इतने कामोंमें उलझता गया, कि अंतको मुझे यरवडायें जाकर शांति मिली। यहां श्री जयरामदास भी थे। उन्होंने चाहा कि मैं, अपने दूसरे तमाम कामोंको एक ओर रखकर सबसे पहले 'आत्म कथा' लिख डालूं । मैंने उन्हें कहलाया कि मेरे अध्ययनका क्रम बन चुका है, और उसके पूरा होने के पहले मैं 'श्रात्म कथा' शुरू न कर सकूंगा । यदि मुझे पूरे छः साल यरवडामें रहनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ होता, तो मैं अवश्य वहीं 'आत्म कथा' लिख डालता । पर अध्ययन क्रमको पूरा होने में अभी एक साल बाकी था और उसके पहले मैं किसी तरह लिखना शुरू न कर सकता था । इस कारण वहां भी वह रह गई । अब स्वामी आनंदने फिर वही बात उठाई है । इधर मैं भी द० प्र० के सत्याग्रहका इतिहास पूरा कर चुका हूं, इसलिए, 'आत्म - कथा' लिखनेको मन हो रहा है । स्वामी तो यह चाहते थे कि पहले मैं सारी कथा लिख डालूं और फिर वह पुस्तकाकार प्रकाशित हो । पर मेरे पास एक साथ इतना समय नहीं । हां 'नवजीवन' के लिए तो रफ्ता रफ्ता लिख सकता हूं । इधर 'नवजीवन' के लिए भी हर हफ्ता मुझे कुछ-न-कुछ लिखना पड़ता है, तो फिर 'ग्रात्म कथा' ही क्यों न लिखूं ? स्वामीने इस निर्णयको स्वीकार किया, और अब जाकर 'ग्रात्म कथा' लिखनेकी बारी आई | पर मैं यह निर्णय कर ही रहा था -- वह सोमवारका मेरा मौन दिन था -- कि एक निर्मल हृदय साथीने ग्राकर कहा-

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