Book Title: Atmakatha Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi View full book textPage 6
________________ रहा अनुवाद । सो इसकी अच्छाई-बुराईके बारे में मुझे कुछ भी कहनेका अधिकार नहीं। मूल वस्तुकी अद्वितीयतासे तो कोई इन्कार नहीं कर सकता। अनुवादमें यदि मूलकी उत्तमतासे पाठकको वंचित रहना पड़े तो अपनी इस असमर्थताका दोष-भागी मैं अवश्य हूं। जवसे मैंने अनुवादको हाथ में लिया है, मैं मुश्किलसे एक जगह ठहरने पाया हूं-- जहां ठहरने भी पाया हूं, तहां अन्यान्य कामोंमें भी लगा रहना पड़ा है। अतएव जितना जल्दी मैं चाहता था, इस अनुवादको पूरा न कर सका। इसका मुझे बड़ा दुःख है । पाठकोंकी बड़ी हुई उत्सुकताको यदि यह अनुवाद पसंद हुआ तो मेरा दुःख कम हो जायगा। अभी तो यह भाव कि मैं महात्माजीके इस प्रसादको हिंदी पाठकोंके सामने पुस्तक-स्वरूपमें रखनेका निमित्त-भागी बना हूं, उस दुःखको कम कर रहा है। और जब मेरी दृष्टि इस अनुवादके भावी कार्यकी ओर जाती है, तब तो मुझे इस सोभाग्यपर गर्व होने लगता है। मुझे विश्वास है कि महात्माजीकी यह उज्ज्वल 'यात्म-कथा' भूमण्डलके आत्माथियोंके लिए एक दिव्य प्रकाशपथका काम देगी और उन्हें आशा तथा आत्माका अमर संदेश सुनावेगी । उज्जैन, फाल्गुन शुक्ल ८, संवत् १९८४. - हरिभाऊ उपाध्यायPage Navigation
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