Book Title: Atmabodh Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Dada Bhagwan Foundation View full book textPage 9
________________ आत्मबोध आत्मबोध दादाश्री : ऐसा नहीं है। चैतन्य का स्वभाव व्याप्त है लेकिन स्वाभाविक चैतन्य इधर दुनिया में रहता ही नहीं। जो चैतन्य दुनिया में है वो विशेषभावी है, स्वभावभावी नहीं है। जो स्वभावभावी चैतन्य हो तो उसकी लाइट सारी दुनिया में व्याप्त हो जाती है!!! प्रश्नकर्ता : चैतन्य सब जगह व्याप्त है न? दादाश्री : हाँ, व्याप्त कभी होता है? कोई दफा हजारो-लाखों में एक होता है, नहीं तो व्याप्त नहीं होता। कोई इधर से भगवान स्वरुप हो गया और वह मोक्ष में जाता है, उस वक्त उसकी लाइट सब जगह व्याप्त हो जाता है। ये हरेक को नहीं होता। सब के लिए तो आत्मा आवरणमय ही है। हम 'ज्ञानी पुरुष' हैं, फिर भी सर्वव्याप्त नहीं है। हम हरेक चीज देख सकते हैं। हमारे को पुस्तक की जरूरत नहीं है। हम 'देखकर' बोलते हैं। प्रश्नकर्ता : आत्मद्रष्टि हो जाये तो ये सब बाहर के आवरण नहीं जहाँ ज्ञान नहीं है, emotions नहीं है वहाँ चेतन नहीं है। चेतन का अर्थ ही ज्ञान है। अपने शुद्ध स्वरुप का ज्ञान, वो ही चेतन है। तो जहाँ ज्ञान है वहाँ चेतन है। नहीं तो जहाँ ज्ञान नहीं हो, लेकिन वहाँ किसी का मालिकी भाव हो तो उसको 'संकल्प चेतन' बोला जाता है। संकल्प चेतन सच्चा चेतन नहीं है। मालिकीभाव छोड़ दें तो कुछ भी नहीं। सर्वव्यापी, चैतन्य या चैतन्यप्रकाश ? प्रश्नकर्ता : चैतन्य सर्वव्यापी है, वह कैसे कहा गया है? दादाश्री : वो सर्वव्यापी ही है। सर्वव्यापी कैसे है, वो आपको बताऊं, सीमीली (उदाहरण) बताऊं? इस रूम में लाइट करे तो लाइट कितनी व्याप्त होती है? ये रूम जितना हो, उतना ही व्याप्त होती है। इसी लाइट को एक मटके के अंदर रख दिया तो मटके में उतनी ही लाइट व्याप्त रहती है। मटका तोड़ दो, तो पूरे रूम में लाइट फैल जाती है। ऐसा आत्मा, अंतिम जन्म में जब यह देह छूट जाती है न, तो सारे ब्रह्मांड में प्रकाश हो जाता है। आत्मा सिर्फ प्रकाश रूप है। ये सब आप जो देखते हैं, वो सब टेम्पररी है। चेतन कोई जगह पर आपने देखा है? प्रश्नकर्ता : कहीं नहीं दिखाई पड़ता। दादाश्री : तो क्या देखते हो? जड़ देखते हो? प्रश्नकर्ता : स्थूल रूप में सारे द्रश्य दिखाई पड़ते है। दादाश्री : हाँ, स्थूल जो दिखता है वो जड़ है, लेकिन जो नहीं दिखता ऐसा सूक्ष्म भी जड़ है। ये सब चाबी दिया हुआ जड़ है, चेतन ऐसा नहीं है। प्रश्नकर्ता : चैतन्य है, वह अणु है और विराट भी है और वह सभी जगह में व्याप्त है। रहते? दादाश्री : इन सबको आत्मा का स्वरूप बताया है। इनको दिव्यचक्षु दिये है। ये सब आपकी आत्मा देख सकते है। पेड़ की आत्मा भी देख सकते हैं। ये दुनिया का ग्यारहवाँ (Eleventh) आश्चर्य है!!! ऐसा कभी हुआ नहीं। ये बिलकुल नयी बात है। वैसे बात तो पहले की है. जो त्रिकाल सत्य है। वो त्रिकाल सत्य एक ही बात रहती है। ये दुनिया जैसी दिखती है न, ऐसी नहीं है। जैसी सब लोगों ने जानी है, ऐसी भी नहीं है। जड़, चेतन : स्वभाव से ही भिन्न ! इस दुनिया में छ: तत्व हैं। वो छ: तत्व अविनाशी हैं। इसमें एक शुद्ध चेतन तत्व है, वो आत्मविभाग है। दूसरे पाँच तत्व हैं, जो अनात्म विभाग के हैं। उन सब में चेतन नहीं है, वो आत्मविभाग नहीं है।Page Navigation
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