________________
आत्मबोध
२७
दादाश्री : ऐसा है, वो अनुभव परमानेन्ट है, लेकिन ऐसा कायदेसर (नियमामुसार) परमानेन्ट नहीं है। परमानेन्ट है, इसको सत् बोला जाता है। सत् है वो अविनाशी होता है। ये पजल है वो अवस्था हैं और अवस्था मात्र विनाशी है। बस, छः अविनाशी तत्व है और उसकी जो अवस्था होती है, वो सब विनाशी है। ये शरीर वो अवस्था है, ये पेड़-पत्ते वो अवस्था है, वो मूल तत्व नहीं हैं। मूल तत्व अविनाशी है और उसकी अवस्था है, वो सब विनाशी है। और सब लोग अवस्था को ही बोलते है कि 'मैं हूँ, मैं हूँ।' लोग विनाशी को 'मैं हूँ' बोलते है । अपना खुद का तत्व समझ में आ जाये कि मेरा खुद का तत्व अविनाशी है। लेकिन अवस्था को 'मैं हूँ' बोलते हैं, इससे खुद भी विनाशी हो जाता है।
परमाणु है वो अविनाशी है लेकिन एक परमाणु है ऐसे अनेक परमाणु (इकट्ठे) हो गये तो अवस्था हो गई। वो अवस्था विनाशी है। फिर परमाणु सब बिखर गये, तो परमाणु अविनाशी है।
बिना आकाश तो जगह नहीं है। आकाश याने अवकाश, स्पेस ! सब जगह पर आकाश ही है। आप बैठे हैं, वो भी आकाश में ही बैठे हैं। अवकाश का आकाश हो गया है। अवकाश अविनाशी तत्त्व है। प्रश्नकर्ता: पेड़ में भी जीव है न?
दादाश्री : हाँ, है। जो भी जीव है वो सभी दिखते हैं, चेतन नहीं दिखता |
प्रश्नकर्ता: पत्थर में भी जीव है?
दादाश्री : पत्थर में अंदर जीव रहता है। लेकिन टूट गया फिर कुछ नहीं और कुछ पत्थर में, जो काला पत्थर रहता है, जिसको लावारस बोलते है, उसमें कोई जीव नहीं है। जो सफेद पत्थर है या लाल पत्थर है, उसके अंदर जीव है। वो सब पृथ्वीकाय जीव है। पानी भी जीव है। पानी भी जीव का ही बना हुआ है। वो अपकाय जीव है। अप
आत्मबोध
याने पानी और काय याने शरीर, पानी रूपी शरीर जिसका है वो जीव, उसका शरीर ही पानी का है। बेक्टेरिया बोलते हैं, वो अलग है, वो तो माइक्रोस्कोप से देख सकते है और अपकाय नहीं देख सकते, वो जीव का पानी रूपी शरीर है। हवा भी जीव है, वो वायुकाय जीव है। ये अग्नि है न, उसमें जो लाल लाल चमकता है, वो भी जीव है, वो खुद ही तेजकाय जीव है।
२८
रूप-रंग आत्मा में नहीं होता है। जो अनात्मा है, उसमें रूप-रंग रहता है। काला, पीला, लाल, सफेद, वो सब रंग और ऐसा मोटा, पतला, ऊँचा, नीचा, वो भी सब अनात्म विभाग का है। आत्मा में, चेतन में ऐसा नहीं है। चेतन तो परम ज्योति स्वरूप है।
ये आँख है, कान है, इन्द्रिय है, इन सबसे जो ज्ञान जान लिया, वो सब रिलेटिव करेक्ट है और वो टेम्पररी एडजस्टमेन्ट है, नोट परमानेन्ट !
प्रश्नकर्ता: तो इन्द्रियों से जो ज्ञान होता है, वह ज्ञान नहीं है?
दादाश्री : वो रिलेटिव ज्ञान है and all these relative are temporary adjustment, not a single adjustment is permanent in this world !! चेतन है वो भी परमानेन्ट है और जड़ है वो भी परमानेन्ट है। जो जड़ परमाणु स्वरूप का है वो परमानेंट है। लेकिन परमाणु है उसे आँख से देख नहीं सकते, अणु तक का देख सकते है, लेकिन परमाणु तक का कोई नहीं देख सकता। वो तो 'ज्ञानी पुरुष' और तीर्थंकर ही देख सकते हैं। जिसको परमाणु बोलते हैं, ये परमाणु फिर पुद्गल होते हैं। ये परमाणु सब इकट्ठे होकर पुद्गल होता है, वो स्कंध होता है। परमाणु आँख से देख सके ऐसा नहीं होता। लेकिन स्कंध है, वो आँख से देख सकते है। लेकिन वो भी परमाणु का ही है और निश्चेतन चेतन है।
प्रश्नकर्ता: निश्चेतन चेतन है तो उसे चेतन क्यों बोला?