Book Title: Atmabodh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 35
________________ आत्मबोध आत्मबोध धर्म को परित्यज्य बोलते है? प्रश्नकर्ता : दुनिया में जो सब धर्म है वो सब को। दादाश्री : वो कौन से, कौन से धर्म है? प्रश्नकर्ता : क्रिश्चियन, इस्लाम, हिन्दू आदि वो सब धर्म। दादाश्री : और कौन से? प्रश्नकर्ता : और मानवधर्म को भी धर्म बोलते हैं, वो सबको छोड़ के मेरी शरण में आ जा। दादाश्री : वो ऐसा नहीं बोलते हैं। वो क्या बोलते हैं? यह कान है, उसका धर्म क्या है? प्रश्नकर्ता : सुनने का। दादाश्री: सुनने का कान का ही धर्म है कि आपका खुद का धर्म है? प्रश्नकर्ता : कान का धर्म है। दादाश्री : और देखने का? प्रश्नकर्ता : आँख का। दादाश्री : और सूंघने का? प्रश्नकर्ता : नाक का। दादाश्री : और स्पर्श का? नहीं बोलती है, लेकिन जो अज्ञानता है न, 'अज्ञान आत्मा' वो क्या बोलती है कि 'हम सुनते हैं, हम देखते हैं, हम खाते हैं, ऐसा हम, हम करता है।' जो कान का धर्म है, वो आपका धर्म नहीं है। उसके पर आरोप मत करो। आप खुद के धर्म में आ जाओ। फिर माइन्ड का धर्म क्या है? माइन्ड का सिर्फ विचार करने का. सोचने का ही धर्म है और बोलता है कि 'मैंने विचार किया।' बुद्धि का धर्म क्या है? डिसीज़न लेने का है। कोई भी चीज आयी तो उसका डिसीजन करने का तो बुद्धि का धर्म है। लेकिन सब लोग बोलते है कि 'ये डिसीज़न मैंने लिया।' चित्त का धर्म क्या है? चित्त का धर्म फिरने का है। माइन्ड तो शरीर के बाहर कभी निकलता नहीं। चित्त ही बाहर निकलता है और चित्त वहाँ ऑफिस में जाकर टेबल-टेलीफोन सब देख सकता है, देखकर वापस आता है। और ईगोइज्म का धर्म क्या है? आप कुछ करेंगे न, वो सब ईगोइज्म का धर्म है, लेकिन वो 'आत्मा' बोलता है कि, 'ये मैंने किया।' ऐसा ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय हैं और मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, वो सब अपने धर्म में ही हैं। वो सब धर्म को 'आत्मा' बोलती है कि 'ये सब मेरा ही धर्म है।' इसलिए 'सर्व धर्म परित्यज्य और आप अपने खुद के धर्म में आ जाइये' ऐसा बोलते हैं। लेकिन खुद का धर्म कहाँ से (प्राप्त) करेगा? वो आत्मज्ञान बिना नहीं हो सकता और आत्मज्ञान 'आत्मज्ञानी' के बिना नहीं हो सकता। आत्मज्ञान होना चाहिये ऐसा सब जानते हैं, लेकिन 'आत्मज्ञानी' के बिना फिर क्या करेंगे? तो सेल्फ रीयलाइजेशन कर लिया तो फिर आत्मा आत्मधर्म में आ गयी। बाकी तो, वो सब अपने धर्म में ही हैं। संसार में मोक्ष (!) प्रश्नकर्ता : मोक्ष को हमने उच्च कोटि का ही माना है न? प्रश्नकर्ता : त्वचा का। दादाश्री : ये जो ज्ञान है सुनने का, वो कान का धर्म है। उसको 'आत्मा' क्या बोलती है कि, 'हम सुनते हैं।' इसमें 'दरअसल आत्मा'

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