Book Title: Atmabodh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 36
________________ आत्मबोध आत्मबोध दादाश्री: सुख का सद्भाव तो बहुत समय के बाद आयेगा। हमको आ गया है। ये सब 'महात्माओं' को नहीं आया। लेकिन ये सब को दुःख का अभाव हो गया है। जगत क्या माँगता है? हमको दुःख न हो। बस, दूसरा कुछ नहीं। इस ज्ञान से पहले संसारी दुःख ही नहीं रहते, ऐसा हो जाता है। स्वाभाविक सुख का सद्भाव तो ज्ञानी पुरुष अकेले को ही रहता है। प्रश्नकर्ता : वो कैसे हो सकता है? दादाश्री : ये विज्ञान है। वीतराग विज्ञान है!!! चौबीस तीर्थंकरों का विज्ञान तो इतना बड़ा भारी है। अभी दुनिया ने तो वीतराग विज्ञान का एक अंश भी नहीं देखा। दादाश्री : उच्च कोटि का नहीं, वो ही लास्ट कोटि का है, वो ही अपना धर्म है। अपना खुद का स्वरूप ही मोक्ष है। प्रश्नकर्ता : मोक्ष के लिए सब लोग प्रयत्न कर रहे हैं तो मोक्ष में क्या सुख है? दादाश्री : बंधन का स्वरूप तो मालम होता है, वो बंधन में जब भी उसको रोग होता है, धंधे में घाटा होता है, नुकसान आता है, तब उसको बहुत परेशानी हो जाती है। और धंधे में कभी पैसा मिलता है, तो उसको आनंद होता है। सुख और दुःख - दोनों कल्पित हैं। सच्चा सुख नहीं है। जो काम करने की इच्छा नहीं है, जो काम नहीं करने है, वो काम भी करने पड़ते हैं। कभी बोस कुछ बोल देता है तो भी दिक्कत हो जाती है। कभी फौजदार मिले, दूसरा कोई मिले तो दिक्कत हो जाती है। तो वो फौजदार का अपने को बंधन लगता है। ऐसे गवर्नमेन्ट का बंधन लगता है, इन्कमटैक्स का बंधन लगता है, घर का, औरत का, सब का। जब दिक्कत होती है, तब बंधन लगता है। आपको ये बंधन लगता है कि नहीं? ये बंधन है ऐसी भी जागृति नहीं है सब लोग को?! ये बंधन है ऐसी जागृति खुद को होनी चाहिए। और मोक्ष याने मुक्ति। संसार के बंधन में रहकर भी मुक्ति लगनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : मोक्ष याने क्या? दादाश्री : दो प्रकार के मोक्ष हैं। एक, सिद्धगति का मोक्ष है। वहाँ पुदगल नहीं है। वो सच्चा मोक्ष है, बिलकुल सच्चा मोक्ष है, १००% करेक्ट। दूसरा, इधर शरीर के साथ मोक्ष रहता है वो। इसमें भी दो प्रकार के मोक्ष होते है। ये 'ज्ञान' लिया फिर पहला मोक्ष हो गया, संसारी दुःखों का अभाव। कोई भी दु:ख नहीं। कोई गाली दे, कोई मारे तो भी दुःख नहीं होता है और फिर इससे आगे स्वाभाविक सुख का सद्भाव होता है, वो जो हमको हुआ है। __ प्रश्नकर्ता : मोक्ष का आनंद कैसा होता है? कैसे कह सकते हैं कि यह मोक्ष का आनंद है? दादाश्री : वो आनंद अपने को पूरा कब मालूम होता है कि जब बाहर से बहुत उपसर्ग आये या तो बहुत बड़ी दिक्कत आयी उस समय ज्ञान में रहे, वो दुःख होने का समय था लेकिन उस समय दुःख नहीं होता है और अंदर से आनंद होता है, तो वो आत्मा का आनंद है। अभी सत्संग में बातचीत करते हैं और भौतिक कोई चीज नहीं है तो ये जो आनंद है, वो भी आत्मा का आनंद है। इधर अहंकार की तो बातें भी नहीं, सब आत्मा की ही बात है, तो जो आनंद होता है न, वो ही सच्चा आनंद है। वो आनंद पूर्ण रुप से कब मिलता है कि जब चारित्र होता है। संसार में रहकर फिर चारित्र ग्रहण करता है, तब वो आनंद दिखता है। साध्यप्राप्ति में 'आवश्यक' क्या ? दादाश्री : कभी मोक्ष की इच्छा होती है या नहीं? प्रश्नकर्ता : दु:ख का अभाव होगा, तो फिर सुख का सद्भाव तो आयेगा ही। प्रश्नकर्ता : हमारे जैसे आदमी को मोक्षप्राप्ति कहाँ से होगी? हम

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