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नौ कलमें
१) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो ।
मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की परम शक्ति दो।
२) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो ।
मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की परम शक्ति दो । ३) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। ४) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये ऐसी परम शक्ति दो ।
५) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाय, न बुलवाई जाय या बुलवाने के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की परम शक्ति दो ।
६) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति, स्त्री, पुरुष अगर नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचित्मात्र भी विषय विकार के दोष, ईच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किया जाय, न करवाया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो ।
७)
हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी रस में लुब्धपना न हो ऐसी परम शक्ति दो। समरसी खुराक लेने की परम शक्ति दो।
८) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष या परोक्ष, जीवंत या मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो ।
९) हे दादा भगवान ! मुझे जगत कल्याण करने में निमित्त बनने की परम शक्ति दो शक्ति दो, शक्ति दो।
(इतना आपको दादा के पास मांगने का है। यह हररोज पढने की चीज नही है, दिल मे रखने की चीज है। यह उपयोगपुर्वक भावना करने की चीज नही है। इतने पाठ में तमाम शास्त्रो का सार आ गया है ।)
शुद्धात्मा के प्रति प्रार्थना
हे अंतर्यामी परमात्मा ! आप प्रत्येक जीवमात्र में बिराजमान हैं, वैसे ही मुझे में भी बिराजमान है। आपका स्वरूप वही मेरा स्वरूप है। मेरा स्वरूप शुद्धात्मा है।
शुद्धात्मा भगवान ! मैं आपको अभेदभाव से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ ।
अज्ञानतावश मैं ने जो भी दोष किए है, उन सभी दोषों को आपके समक्ष जाहिर करता हूँ। उनका हृदयपूर्वक बहुत पछतावा करता हूँ और क्षमा माँगता हूँ। हे प्रभु! मुझे क्षमा करे, क्षमा करे, क्षमा करे और फिर से ऐसे दोष नहीं करूँ ऐसी आप मुझे शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे।
शुद्धात्मा भगवान! आप ऐसी कृपा करें कि हमारे भेदभाव छूट जाये और अभेद स्वरूप प्राप्त हो। हम आप में अभेद स्वरूप से तन्मयाकार रहे।
(जो दोष हुए हो, वे मन में जाहिर करें )
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