Book Title: Atmabodh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 12
________________ आत्मबोध १३ प्रश्नकर्ता: वो तो शरीर दिखाई देता है। शरीर के भीतर चेतन है। शरीर चेतन नहीं है। दादाश्री : लेकिन ये शरीर सब क्रिया करता है, वो कौन करता है? प्रश्नकर्ता: भीतर में चेतन है, वो करवाता है। दादाश्री : वो आत्मा ऐसा हाथ ऊँचा करता है? नहीं, वो तो मिकेनीकल चेतन है। आत्मा ऐसा नहीं करवाता, वो खाली प्रकाश ही देता है। उसकी हाजरी से ही सब कुछ हो रहा है। उनकी हाजरी चली जाये तो ये मिकेनीकल सब बंध हो जायेगा। खाता हैं, पीता हैं, शौच जाता हैं, वो सब मिकेनीकल आत्मा है। लेकिन 'हम खाते है, हम पीते है, हम शौच जाते है' ऐसी प्रतिष्ठा करता है। प्रतिष्ठा की तो 'प्रतिष्ठित आत्मा' उत्पन्न हो गयी। वो सच्ची आत्मा नहीं है, वो 'मिकेनीकल आत्मा' है। आप जो जिन्दा आदमी को देखते हो, जिस भाग को जिन्दा कहते हो, वो जिन्दा नहीं है। लेकिन बुद्धि से वो जिन्दा लगता है और ज्ञान से वो जिन्दा नहीं है। ज्ञान से वो मात्र मिकेनीकल चेतन है। 'निश्चेतन चेतन का खेला, सापेक्षित संसार है' नवनीत ये संसार कैसा है? ये आँख से दिखता है, वो सब मिकेनीकल चेतन है। ये जज़ दिखता है, आरोपी दिखता है, वकील भी दिखता है, डाक्टर भी दिखता है, सब लोग जो क्रिया करते हैं, वो सब मिकेनीकल है। उसमें भगवान नहीं है, ये सब निश्चेतन चेतन हैं। याने हेन्डल मारने से चलता है। वो सच्चा चेतन नहीं है। सच्चा चेतन अचल है और ये चंचल हैं। सच्चा चेतन स्थिर है, हिमालय जैसा स्थिर है। कितनी भी हवा चले तो हिमालय नहीं हिलता, ऐसे ही सच्चा चेतन स्थिर है। पूरे दिन में शरीर कितनी भी क्रिया करे, कितना भी हिलता है, लेकिन वो शुद्ध चेतन अचल है, स्थिर है। १४ आत्मबोध 'विनाशी चीज पूरण- गलन है, अविनाशी भगवान है'- नवनीत कविराज क्या कहते हैं कि विनाशी चीज सब पूरण है और गलन है, आने-जानेवाली चीज है। इधर से खाना खाया फिर शौच में गलन होता है। पानी पूरण किया, फिर बाथरूम में गलन होता है। श्वास का पूरण किया, फिर उच्छ्वास में गलन होता है। वो सब पूरण- गलन है, वो सब विनाशी है और भगवान खुद इसमें अविनाशी है। आत्मा का रीयल स्वरूप ! प्रश्नकर्ता: 'अज्ञानी आत्मा' किसे कहते हैं और 'ज्ञानी आत्मा' किसे कहते हैं? दादाश्री : जिधर 'मैं नहीं हूँ', वहाँ 'मैं हूँ' बोलते हैं, वो 'अज्ञानी' है। 'मैं रवीन्द्र हूँ' बोलता है, वह 'अज्ञानी' है। 'मैं इस बाई का पति हूँ, इस लडके का फादर हूँ, इसका भाई हूँ' वह सब 'अज्ञानी' है। सेल्फ को रीयलाइझ कर लिया और ज्ञान हो गया कि, 'मैं शुद्धात्मा हूँ', तो वो ज्ञानी है। 'शुद्धात्मा' भी फर्स्ट स्टेज का ज्ञान है, इससे उसको मोक्ष में जाने का 'वीज़ा' मिल गया। लेकिन यहाँ तक गया तो बहुत है। 'वीज़ा' मिल जाने के बाद प्लेन मिल जायेगा, सब मिल जायेगा, मोक्ष पक्का हो जायेगा। प्रश्नकर्ता : पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच ज्ञानेन्द्रिय और अंदर सूक्ष्म भावेन्द्रिय होती है, तो भावेन्द्रिय क्या है? दादाश्री : भावेन्द्रिय वह भाव है। भावेन्द्रिय पर चलता है, वो ही 'अज्ञानी आत्मा' है। ‘मैं देखता हूँ, मैं सुनता हूँ, मैंने किया', वो 'अज्ञानी आत्मा' है और हम आपको ज्ञान देते है, बाद में आप बोल सकते हैं कि, 'रवीन्द्र देखता है, रवीन्द्र सुनता है, रवीन्द्र ने ये किया।' फिर आप ये सब को अलग भी देख सकते है। प्रश्नकर्ता: हम तो ये समझते हैं कि जिसकी आत्मा सच्ची है, वो सबसे बड़ा शक्तिमान है और जिसकी आत्मा तुच्छ है तो....

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