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आत्मबोध
है, इसमें चेतन की कोई शक्ति नहीं है। ये तो ईगोइज्म करता है, 'ये मैंने किया, वो ही भ्रांति है। सारी दुनिया जड़ को ही चेतन मानती है, लेकिन चेतन तो चेतन ही है। उस चेतन को अकेले 'ज्ञानी पुरुष' ही जानते है।
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प्रश्नकर्ता: जो आत्मतत्व है, वो सभी को प्रकाशित करता है न? जड़ को भी और चेतन को भी ?
दादाश्री : हाँ, वो सब को प्रकाशित करता है, लेकिन जड़ कभी चेतन नहीं होता है।
है ।
क्या चेतन सर्वत्र है ?
भगवान को कभी आपने देखा है? भगवान किधर है? प्रश्नकर्ता: भगवान तो सब जगह पर है, omnipresent, सर्वत्र
दादाश्री : सब जगह पर भगवान है तो यहाँ आने की कोई जरूरत ही नहीं। मंदिर में भी जाने की जरूरत नहीं। मंदिर में कभी जाते हो?
प्रश्नकर्ता: हाँ, जाता हूँ ।
दादाश्री भगवान घर में भी है, फिर मंदिर में क्यों जाते हो ?
प्रश्नकर्ता: वहाँ पर भावना से जाता हूँ।
दादाश्री : बात तो समझनी चाहिए न? सब जगह भगवान है, तो दूसरा कोई है ही नहीं?! वो चावल आपने देखें है? वो खाने के लिए होता है, इसमें अंदर से कभी कभी बारीक पत्थर निकलता है। उसको फिर चुनते हैं न?! ये चावल की बोरी है, उसमें सिर्फ चावल ही हो, तो फिर इसको चुनने का नहीं हैं, ऐसी बात है। बोलने के लिए, 'ये सब चावल है' ऐसा बोलते है, लेकिन ये चावल भी है और पत्थर भी हैं। इसी तरह 'सभी जगह आत्मा है' वो बात ऐसी है कि
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आत्मबोध
आत्मा भी है और अनात्मा भी है। नहीं तो सभी जगह आत्मा है तो फिर दूसरी जगह जाने की जरूरत नहीं है। परमात्मा सभी जगह पर है तो फिर परेशानी हमें क्यों रहती है ?! जिसने ऐसा बताया कि सभी जगह परमात्मा है, वो रोंग थीयरी है। यदि सभी जगह परमात्मा है, तो किसी को डीप्रेशन कभी होगा ही नहीं, परमानंद ही रहना चाहिए। लेकिन ऐसा है नहीं। कृष्ण भगवान ने कहा है कि दुनिया में आत्मा और अनात्मा, दो चीज है। जड़ और चेतन है। चेतन भगवान है और जड़ दूसरी चीज है। तो सभी जगह पर आत्मा नहीं है। आत्मा भी है और जड़ भी है।
God is in every creature whether visible or invisible, not in creation. आपके और मेरे बीच में invisible creature (इनविजिबल क्रियेचर) बहुत है, उन सभी में भगवान है।
प्रश्नकर्ता: इनविजिबल क्रियेचर के अंदर भगवान है, इसका प्रूफ कैसे दे सकते हो?
दादाश्री : इनविजिबल क्रियेचर वो सब एक्टीव हैं और उनको दुःख अप्रिय है और सुख प्रिय है। ये जो टेपरिकार्डर है, वो एक्टीव नहीं है।
प्रश्नकर्ता: इनविजिबल क्रियेचर को भी सुख-दुःख रहता है?
दादाश्री : सुख-दुःख तो सब को होता है, पेड़ को भी सुखदुःख होता है । क्रियेचर मात्र को सुख-दुःख की इफेक्ट होती है। पेड़ को भी बहुत जोर से हवा आये, तूफान बोलते हैं न, तो भी दुःख होता है। अशोक वृक्ष को 'लेडी' हाथ लगाये तो उसको खुशी हो जाती है। ये आँख से दिखते हैं, वो जंतु हैं, उसको भी अपना हाथ लगे तो त्रास लगता है, तो वो भाग जाता है।
सक्रियता में शुद्ध चेतन कहाँ ?
अभी चलता-फिरता दिख रहा है वो ही आत्मा है न?