Book Title: Arbud Prachin Jain Lekh Sandohe Abu Part 02
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthamala Ujjain

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Page 739
________________ ૬૧૮ "आप" भाग पडेनाना कितनी और किस प्रकार की सहायता चाहिये ? सो प्राप्त होना कठीन है। इतना होने पर भी मुनिराजश्री ने इस ग्रंथ को अनुपम बनाया है। पृष्ठ १७ के फुटनोट पर लिखा है कि आबू का लेखसंग्रह प्रकाशित होगा । उसमे असल लेख का प्रकाशन हो तो प्रशंसनीय है। हम इस ग्रंथ को देखते इतना तो जरूर कहेंगे कि इस तरह का एकत्रित इतिहास हरएक जैनतीर्थ का बहुत बारिक जांच परताल के साथ प्रकाशित होना चाहिये । तीर्थरक्षक महानुभावों के हाथों से हजारह रूपैयें खर्च होते होंगे, लेकिन इतिहास-प्रकाशन की और लक्ष नहीं देखा जाता। मुनिराजश्री ने जैनसमाज पर पूरा उपकार कर इस इतिहास के प्रकाशन से ऋणी बनाया है। पुस्तक बहुत उत्तम है, हरएक को संग्रह करना चाहिये । चंदनमल नागोरी। छोटीसादड़ी. ( मेवाड़ ) (४) आपकी किताब ( आबू ) उपर उपर से ही देख पाया । इतनी विस्तीर्ण किताब आबू के बारे में दूसरी शायद ही होगी। किताब के लिये धन्यवाद ! ध्यानपूर्वक पढने पर फिरसे लिखूगा । काका कालेलकर. आचार्य सत्याग्रह आश्रम, वर्धा ( सी. पी.) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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