Book Title: Arbud Prachin Jain Lekh Sandohe Abu Part 02 Author(s): Jayantvijay Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthamala Ujjain View full book textPage 6
________________ ---------------------------------------- एक अभिप्राय {{{{{{i} {{{------------------------------------3 Jain Education International अजमेर, ता० २२-७-१९३६ × × × आपने कृपाकर ' अर्बुद - प्राचीन जैन लेखसन्दोहः नामक जैन लेखों का जो संग्रह छप रहा है, उसके छपे हुए फर्मे मेरे पास भेजने की सिरोही में इच्छा प्रकट की थी और मैं उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, परन्तु आपका चातुर्मास किस गांव में होगा यह निश्चित न होने से मैं आपको पत्र लिख कर उन फर्मों की याद देहानी नहीं कर सका, परन्तु कल आपके पत्र के साथ साथ चार फर्में जो आपके पास थे और आपने कृपा कर मेरे पास भेज दिये वे पहुंचे। इसके लिए मैं आपका बहुत ही अनुगृहीत हूँ । कल ही मैंने उनको आद्योपान्त पढ डाले और मुझे उनसे जो असीम आनन्द हुआ वह मैं शब्दों में प्रकट नहीं कर सकता। मुझे पूर्ण आशा है कि बाकी के जितने फर्म अब तक छप चुके हों उनको शीघ्र प्रेस से मंगवाकर मेरे पास भेजने की कृपा फरमावें, ताकि मेरी तृषा बुझ जावे । इन ६४ पृष्ठों के देखने से ही मुझे निश्चय हो गया कि आपका यह संग्रह रत्नों के भंडार के समान है और जिन लोगों को इतिहास और पुरातत्त्व से प्रेम है, उनके लिए तो यह संग्रह अटूट संपत्ति के समान होगा । यह संग्रह केवल जैनों के लिए ही उपयोगी है इतना ही नहीं, किन्तु समस्त इतिहासवेत्ताओं तथा पुरातत्त्वविदों के लिए भी बडे काम की वस्तु है | गुर्जरेश्वर पुरोहित सोमेश्वर रचित 'कोर्तिकौमुदी . For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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