Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना. वीप स्त्रीना तिलक समान धवलकपुरमां मंत्रीश ( वस्तुपाळ )ना पुण्यवशायी तेना 'पाश्रयमां वसता या सूरिए संवत् १२एए ना वर्षे ११४११ श्लोक प्रमित ना कर्णिका मिनी वृत्ति रची रे." श्रा उपरथी या ग्रंथकार सूरि श्रीविजयसेन सूरिना शिष्य हता तथा तेमनो सत्तासमय संवत् १२एए मां हतो एम सिद्ध थाय बे. श्रीविजयसेन सूरिना गुरु कलिकाळ गौतम श्रीहरिना सूरि, तेमना गुरु श्रीआनंद सूरि अने अमरचंड सूरि हता, तेमना गुरु श्रीशांति सूरि अने तेमना गुरु श्रीमहेंजप्रत्न सूरि हता. श्रा ग्रंथमां पांच विमर्शो पामेला ने अने तेनुं सर्व मळीने एकंदर अनुष्टुप्नी गणत्रीए ४६० श्लोक पूरतुं प्रमाण बे. श्लोको नाना मोटा बंद तथा वृत्तमा घणा रसिक प्रने उच्च संस्कृत नाषामा बनावेला होवाथी विधानोना हृदयने रंजन करे तेवा . आ चे विमर्शमां थश्ने अगीयार पार पामेला जे. तेमा पहेला विमर्शमां तिथिवार १,वारबार २, नक्षत्रधार ३ अने योगधार ४, ए चार बार बे. बीजा विमर्शमां राशिफार ५ अने गोचरफार ६, ए बेकार कहेलां के. श्रीजा विमर्शमां कार्यघार ७ एकज कहेलु जे. वोया विमर्शमां गमधार तथा वास्तुधार ए ए बे घार कहेलां , श्रने पांचमा विम, मां विलग्नघार १० तथा मिश्रधार ११ ए बे घार कहेलां बे. ते ते दारोमां ते ते . १ जैन धर्मना प्राचीन इतिहासमां पृष्ठ २१ मां उदयप्रभ सूरिनो सत्तासमय १२२० थी १२८७ लख्यो छे, परंतु कर्णिकानी प्रशस्तिमां लखेलो संवत् १२९९ छे. ते वधारे मानवा योग्य छे. मज जैन ग्रंथावळीमां पण पृष्ठ १७१ मां कर्णिका रचवानो काळ संवत् १२९९ ज लख्नेलो छे. १ आ हरिभद्र सूरि सिवाय वीजा त्रण एज नामना सूरि थइ गया छे. तेमां एक याकिनीमहत्तरानुना नामथी महान् प्रसिद्ध छे, तथा बीजा बे बृद्गच्छमां थयेला छे. आ हकीकत हरिभद्र पूरि चरित्र (छापेल )ना पहेला पृष्ठमां फुटनोटमां सविस्तर आपेली छे. ३ आ वंशावळी जैन पर्मना प्राचीन इतिहासमां आपेली छे (पृष्ठ २१) तेमज उपर्युक्त हरिभद्र सूरि चरित्र उपरथी पण बात्री थइ शके तेम छे. ४ आ सर्व उपर लखेली हकीकत तथा फुटनोटो उपरथी आ ग्रंथकारनो सर्व हेवाल सिद्ध थाय छे, परंतु जैन ग्रंथावळीमां हकीकत संगत थती नथी. तेमां पृष्ठ ७६ मां फुटगोटमां उदयप्रभ सूरि नामना बे आचार्य थयानुं लखे छे. तेमां आ ग्रंथकारने पहेला कह्या हे, ते संबंधी लखेली हकीकत मळती आवे छे, परंतु बीजा उदयप्रभ सूरि रविप्रभ सूरिना शिष्य अने मल्लिण सूरि के जे स्याद्वादमंजरीना टीकाकार हता तेना गुरु हता एम जे लख्युं छे ते संगत नथी. मज उदयप्रभ सूरिना रचेला घणा ग्रंथो जैन ग्रंथावळीमां लख्या छे, परंतु बेमांथी कया उदयप्रभ रिए कया कया ग्रंथो रच्या ? तथा बीजा उदयप्रभ सूरिनो सत्ताकाळ कयो हतो ? ए विगेरे कांड ण चोकस थइ शकतुं नथी. भा०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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