Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri Publisher: Shravak Bhimsinh ManekPage 12
________________ प्रस्तावना. गगे श्रीपति लनशुद्धि बंडप्रति वृत्ति लस होरामकरंद वास्तुविद्या रलमाळा नुवनदीपक स्वरोदयवित् यतिवसन्न त्रैलोक्यप्रकाश नास्करव्यवहार नारचंड मुहूर्तसार योगयात्रा ग्रंथ पूर्णन सप्तर्षि वास्तुशास्त्र दैवज्ञवसन वाराहसंहिता ब्रह्मशंन्नु टीका दिनशुद्धि ज्योतिषसार विद्याधरी विलास व्यवहारप्रकाश रत्नमालानाष्य काळनिर्णय नरपतिजयचर्या नत्रसमुच्चय ब्रह्मसिद्धांत हर्षप्रकाश रुज्यामल काठगृह्य पा(लो)कश्रीग्रंथ प्रश्नप्रकाश (कर) खंमखाद्य नाष्य व्यवहारसार शौनक सारंग गदाधर विवाहपटल केशवार्क महादेव जीमपराक्रम ग्रंथ विवाहवृंदावन लोज करणकुतूहल-जास्कर सिद्धांत लघुजातक मुर्गसिंह सत्यसूरि बृहज्जातक कटपाख्य बेद ग्रंथ वृत्ति बृहस्पति ताजिक गौतम लक्ष्मीधर अनशतक वृत्ति यवन देवलमुनि यवनेश्वर स्थानांग वृत्ति अध्यात्मशास्त्र श्रा उपरथी वाचकवृंदने स्पष्ट समजाशे के टीकाकारने ज्योतिषना विषयमा केटल ग्रंथर्नु अने केQ असाधारण ज्ञान हतुं ? था एकज ग्रंथ साद्यंत उपस्थित होय तो है वर्तमान समयमा उच्च विद्याननी पंक्तिमा गणाय ए निर्विवाद . टीकाना पण दरे विषयो अनुक्रमणिकामां सविस्तर आप्या , तेथी आ स्थळे विस्तारना जयश्री लखतः नयी. या ग्रंथ दरेकने उपयोगी थाय एवा हेतुथी जाषांतर करावीने उपाव्यो बे. तेमा प्रथम मूळ श्लोक अने तेनी नीचे मूळ श्लोकनो अर्थ लखेलो बे. तेनी नीचे श्लोकन टीकार्नु मात्र लाषांतरज वख्यु ने, परंतु टीकामां ग्रंथांतरोनां जेटलां वचनो टीकाकारे आप्यां ने तेनुं मूळ पण लाषांतर सहित आप्यु के. मूळ तथा ग्रंथांतरोनां वचनोने श्राश्रीने जेटली समजुती तथा उदाहरणो विगेरे टीकाकारे आप्यां ने तेनुं अक्षरश त्रिविक्रम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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