Book Title: Aptavani 04 Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 4
________________ दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा प्रकाशित पुस्तकें हिन्दी १. ज्ञानी पुरूष की पहचान २०. पति-पत्नी का दिव्य २. सर्व दुःखों से मुक्ति व्यवहार ३. कर्म का विज्ञान २१. माता-पिता और बच्चों का ४. आत्मबोध व्यवहार ५. मैं कौन हूँ? २२. समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ६. वर्तमान तीर्थकर श्री सीमंधर स्वामी २४. मानव धर्म ७. भुगते उसी की भूल २५. सेवा-परोपकार ८. एडजस्ट एवरीव्हेयर २६. मृत्यु समय, पहले और ९. टकराव टालिए पश्चात १०. हुआ सो न्याय २७. निजदोष दर्शन से... निर्दोष ११. चिंता २८. प्रेम १२. क्रोध २९. क्लेष रहित जीवन १३. प्रतिक्रमण ३०. अहिंसा १४. दादा भगवान कौन? ३१. सत्य-असत्य के रहस्य १५. पैसों का व्यवहार ३२. चमत्कार १६. अंत:करण का स्वरूप ३३. पाप-पुण्य १७. जगत कर्ता कौन? ३४. वाणी, व्यवहार में... १८. त्रिमंत्र ३५. आप्तवाणी-१ १९. भावना से सुधरे जन्मोजन्म ३६. आप्तवाणी-४ दादा भगवान कौन ? जून १९५८ की एक संध्या का करीब छ: बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर का रेल्वे स्टेशन, प्लेटफार्म नं. 3 की बेंच पर बैठे श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी देहमंदिर में कुदरती रूप से, अक्रम रूप में, कई जन्मों से व्यक्त होने के लिए आतर 'दादा भगवान' पूर्ण रूप से प्रकट हुए। और कुदरत ने सर्जित किया अध्यात्म का अद्भुत आश्चर्य। एक घंटे में उन्हें विश्वदर्शन हुआ। 'मैं कौन? भगवान कौन? जगत् कौन चलाता है? कर्म क्या? मुक्ति क्या?' इत्यादि जगत् के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों के संपूर्ण रहस्य प्रकट हुए। इस तरह कुदरत ने विश्व के सम्मुख एक अद्वितीय पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, गुजरात के चरोतर क्षेत्र के भादरण गाँव के पाटीदार, कान्ट्रेक्ट का व्यवसाय करनेवाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष! उन्हें प्राप्ति हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घंटों में अन्य मुमुक्षु जनों को भी वे आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे. उनके अदभूत सिद्ध हुए ज्ञानप्रयोग से। उसे अक्रम मार्ग कहा। अक्रम, अर्थात् बिना क्रम के, और क्रम अर्थात् सीढ़ी दर सीढ़ी, क्रमानुसार ऊपर चढ़ना। अक्रम अर्थात् लिफ्ट मार्ग, शॉर्ट कट! वे स्वयं प्रत्येक को 'दादा भगवान कौन?' का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह जो आपको दिखते है वे दादा भगवान नहीं है, वे तो 'ए.एम.पटेल' है। हम ज्ञानी पुरुष हैं और भीतर प्रकट हुए हैं, वे 'दादा भगवान' हैं। दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ हैं। वे आप में भी हैं, सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहे हुए हैं और 'यहाँ' हमारे भीतर संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं। दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ।" 'व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं'. इस सिद्धांत से उन्होंने पूरा जीवन बिताया। जीवन में कभी भी उन्होंने किसीके पास | से पैसा नहीं लिया, बल्कि अपनी कमाई से भक्तों को यात्रा करवाते थे। दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा गुजराती भाषा में भी ५५ पुस्तकें प्रकाशित हुई है। वेबसाइट www.dadabhagwan.org पर से भी आप ये सभी पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं। दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा हर महीने हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी भाषा में "दादावाणी" मैगेज़ीन प्रकाशित होती है।Page Navigation
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