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अपराध क्षण भर का
यह सुनकर चेलना भयभीत हुई और उसने बच्चे को जंगल में फिकवा दिया। परन्तु...
श्रेणिक से शादी के बाद चेलना ने 'कुणिक' को जन्म दिया, तभी एक ज्योतिषी आया।
अपने पुत्र को इतना प्यार कर रही हो, पता है यही अपने पिता की मृत्यु का कारण होगा।
नहीं, हर्गिज नहीं। उसे वापस ले आओ।
एक दिन बौद्ध साधुओं के राजमहल में आने पर उसे अचानक ध्यान आया।
अरे यहाँ तो कभी जैन साधु नहीं आते ? जिन पूजन भी नहीं होता, यहाँ
तो सभी विधर्मी हैं।
आह! अपने को जैन बताकर पुत्र अभय ने ठग लिया है। मैंने कौनसा पाप किया था, जो जैनधर्म से विमुख होना पड़ा।
दुःखी चेलना ने खाना-पीना छोड़ दिया। जब श्रेणिक को पता चला तो वे बहुत दुखी हुए और बहुत समझाया, परन्तु हार गये।
स्वामी जैनधर्म व जैन साधु
ही श्रेष्ठ हैं। ये जीव जन्तुओं पर दया भी करते हैं। फिर आप ही बतावें कि हम इस सुखकारी धर्म को कैसे छोड़ें?
ठीक है, जो तुम्हें अच्छा लगे वही करो। परन्तु दुखी न
रहो।