Book Title: Apradh Kshan Bhar Ka
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 30
________________ 28 मुक्ति कामिक्स साँप को मारकर यशोधर मुनि के गले में डालकर वह चला गया। इस दृश्य से राजा और क्रोधित हुआ, तभी उसे एक साँप दिखा और लगता है, मांत्रिक है, कुत्तों का मुँह बन्द कर दिया...तो ये ले। श्रेणिक राजा ने तीसरे दिन यह घटना चेलना को सुनायी। हाय ! यह तो बहुत बुरा किया। काश ! मैं कुँवारी ही रहती। नहीं...नहीं.. वे साधु तो उपसर्ग समझकर पर्वत की तरह अचल रहकर ध्यान में लीन हो गये होंगे.. अरी ! बावली क्यों होती है ? वह पाखण्डी तो अब तक साँप फेंक कर भाग गया होगा। ऐसी बात है ? तो चलो अभी चलकर देख लेते हैं, सत्य सामने आ जायेगा।

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