Book Title: Apradh Kshan Bhar Ka
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 28
________________ मुक्ति कामिक्स यह जानकर बौद्ध साधु भयभीत होकर श्रेणिक के पास आये। अनुकूल उत्तर पाकर रानी धर्माराधना करते हुए महल में ही सभी को जैनागम पढ़ाने लगी। सुना है रानी... इससे तो बौद्ध धर्म रसातल में पहुँच जाएगा। मैंने बहुत समझाया.. पर वह मानती ही नहीं। तब बौद्ध साधु रानी चेलना को समझाने आये। देख रानी! तेरा जैनधर्म कदापि श्रेष्ठ नहीं। भूखों व नंगों का यह धर्म ज्ञान-विज्ञान रहित है। अरे इन दीन-दरिद्रों की सेवा करोगी, तो ऐसा ही फल पाओगी। हमने अपनी सर्वज्ञता से ऐसा जाना। नहीं ! नहीं ! जैन साधु तो महान शूरवीर, निर्विकारी व विद्वान होते हैं। तुम लोग डरपोक व कायर हो इसीलिए शहर में रहते हो, और अपने पापों को ढकने के लिए वस्त्र पहिनते हो...

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