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अपराध क्षण भर का
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रात्रि में ही वहाँ जाकर देखते हैं, ध्यान में लीन मुनि का शरीर चाटियों से भरा पड़ा है।
और जमीन में खांड डालकर चीटियों को शरीर पर से
उतारने
लगी...
आह ! भयंकर उपसर्ग...शरीर को काट लिया है, ओह! कितनी सूजन...कोई उपाय... ।
इस तरह चीटियों को दूर किया। सुबह मुनिराज ने दोनों को ही आशीर्वाद दिया।
अरे ! ये क्या ? आश्चर्य, मैंने तो अहित किया, फिर भी मुझे धर्मवृद्धि का आशीर्वाद। ये कितने महान हैं, और मैं सचमुच में निन्दा का पात्र...
मेरी सुप्त
सामर्थ्य को ललकारने वाले तुमने मेरे मन की बात कैसे जान ली?
अरे ! अपनी भूल पर इतना खेद क्यों? वह तुम्हारा शिक्षक है, उससे शिक्षा
ग्रहण करके भूले हुए भगवान को याद करो। भगवान बनने के सामर्थ्य को जानो, पहिचानो, स्वीकारो...