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अपराध क्षण भर का परन्तु कुणिक ने कुछ भी ध्यान नहीं दिया...उसने
माँ! मेरे समान इस जगत् में पुत्र मोही कोई न होगा।
अरे ! तू ही क्या, सभी का पुत्र मोह ऐसा ही होता है। याद है, बचपन में जब
तेरी अंगुली में फोड़ा हुआ था, तो दुर्गन्ध की परवाह न करके तेरे पिता ने ही मुँह में तेरी अंगुली डालकर मवाद चूसकर फेंका था।
तब तुझे आराम मिला था।
सारी बात जानकर कुणिक का भ्रम दूर
जिसने तुझे पढ़ाया-लिखाया राज्य-सम्पदा दी। उसके साथ ऐसा क्रूर व्यवहार, धिक्कार है तुझे अरे पापी ! कृतघ्नी! उन्हें मुक्त कर और चरणों को छूकर माफी माँग।
हाँ माँ ! मैं नीच हूँ,
पशुतुल्य हूँ। क्षमा कर माँ मैं अभी जाकर उन्हें छुड़ाता हूँ।
तभी कारागृह की ओर आते कुणिक को देखकर श्रेणिक सोचता
इसी घबराहट में वह पैनी सलाखों से जा टकराया और..
इतने दिनों से भूखा-प्यासा..... उस पर इतना अपमान...हे भगवान
और नहीं सहा जाता...अरे! शायह यही... अब और दुःख
आह ! मैं अपराधी क्षणभर
का...
देने......
ना