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अपराध क्षणभर का
योगेश
प्रकाशक: Hawa अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, खैरागढ़
एवं कहान स्मृति प्रकाशन, सोनगढ़
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प्रकाशकीय दिनांक 26 दिसम्बर, 1988 से प्रारम्भ हुई श्रीमती धुड़ीबाई खेमराज गिड़िया ग्रन्थमाला अपने विगत 14 वर्षों से निरन्तर प्रथमानुयोग के आधार पर बाल साहित्य प्रकाशित करने में अग्रणी रही है। अबतक ग्रन्थमाला के माध्यम से जैनधर्म की कहानियों के 14 भागों के रूप में 2 लाख 22 हजार प्रतियाँ एवं चौबीस तीर्थंकर महापुराण (हिन्दी व गुजराती) की 24 हजार प्रतियाँ जन-जन में पहुंच चुकी हैं, फिर भी उनकी निरन्तर माँग बनी हुई है।
___ कहा जाता है कि बाल्य-अवस्था में जो संस्कार पड़ जाते हैं, वे अमिट हो जाते हैं। आज के इस दूरदर्शन के युग में बालकों को सही दिशा देने के लिए इसप्रकार के सहज शिक्षाप्रद एवं बोधगम्य बाल साहित्य की जरूरत बहुत महसूस की जा रही है, परन्तु अभीतक मात्र कहानियों के माध्यम से ही उसकी पूर्ति हो रही थी, पर अब हम इस नई कड़ी के रूप में खास कर 5 से 10 तक वर्ष के बालकों को ध्यान में रखते हुए “मुक्ति कॉमिक्स" का प्रकाशन प्रारम्भ करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं, जिसका प्रथम भाग आपके हाथों में है।
आशा है हमारा यह प्रयास अवश्य ही बालकों के साथ आप सभी को भी लाभप्रद सिद्ध होगा। आप इसे और अधिक उन्नत बनाने हेतु अपना सुझाव व सहयोग अवश्य भेजें।
प्रस्तुत कृति की कीमत कम करने में जिन्होंने सहयोग दिया है अथवा ग्रन्थमाला के सदस्य बनकर सहयोग किया है। हम उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं एवं आशा करते हैं कि भविष्य में भी सभी इसीप्रकार सहयोग देते रहेंगे। अन्त में, हम कॉमिक्स के लेखक डॉ. योगेशचन्द्र जैन, रेखाकार श्री त्रिभुवन सिंह, रंगकार श्री मनमोहन सोनी एवं मुद्रक जैन कम्प्यूटर्स के विशेष आभारी ह। मोतीलाल जैन
प्रेमचन्द जैन अध्यक्ष
साहित्य प्रकाशन प्रमुख
सम्पादकीय “अपराध क्षणभर का" भले ही तीर्थंकर महावीर के शिष्य राजा श्रेणिक के जीवन पर आधारित घटनाओं को रेखांकित कर रहा है, परन्तु यह श्रेणिक व चेलना के जीवन की व्याजोक्ति में सम्पूर्ण मानव जीवन के आपराधिक परिणामों का एक चित्रांकन है। अपराधों को अंजाम देने के क्षण बहुत लम्बे नहीं हुआ करते, परन्तु उसके परिणाम व बदनामी के काल बहुत कष्टदायी एवं दीर्घजीवी हुआ करते हैं।किसी ने कहा है – “कुछ लम्हे ख़ता करते हैं, परन्तु सदियाँ सजा पाती हैं।"
उपरिलिखित लोक-सिद्धान्त से हमारा पाठक भी शायद सहमत होगा, और सम्पूर्ण श्रेणिक चरित्र से ऐसा ध्वनित भी होता है। अतः हमें अपने परिणामों के सुधार का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए। जब श्रेणिक के कुछ क्षण के तीव्र परिणाम तीसरे नरक गति के बन्ध के कारण हुए तो हमारे ऐसे सतत होने वाले परिणामों से क्या गति होगी, इसका गम्भीर विचार एकान्त क्षणों में हमें करना चाहिए, यही इस चित्रकथा के लिखने-पढ़ने का उद्देश्य है, आशा है, सुधी-बालमन इस उद्देश्य की पूर्ति करेगा। ऐसी भावना के साथ....
- डॉ. योगेशचन्द्र जैन, अनेकान्त फार्मा., अलीगंज
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अपराध क्षणभर का
आलेख एवं सम्पादन
डा. योगेशचन्द्र जैन
頭曲
रेखाकार - त्रिभुवन सिंह यादव
प्राचीन काल में मगध देश की
राजधानी राजगृही में एक राजा राज्य करता था, उसके श्रेणिक
आदि 500 पुत्र थे
1
दयालु राजा ने युद्ध जीतकर सोमशर्मा का अहंकार तोड़कर राज्य भी वापस कर दिया
एम. ए. पी एच डी., जैनदर्शनाचार्य
रंगकार - मनमोहन सोनी
वह बहुत दयालु व निरभिमानी था, परन्तु उसका पड़ौसी राजा सोमशर्मा अहंकारी, ईष्यालु व निर्दयी था । अतः सोमशर्मा की दुखी प्रजा का दुख दूर करने के लिए एक दिन दयालु राजा ने चढ़ाई कर दी।
मैं हार तो गया... परन्तु तुमसे बदला लेकर रहूँगा....
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मुक्ति कामिक्स
जाओ इसे श्रेणिक के पिता को बेच दो
और तब सोमशर्मा ने बदला लेने के लिए एक चाल चली, एक भयानक खूखार घोड़ा...
और सारी योजना समझा दी
घोड़ा लेकर व्यापारी श्रेणिक के पिता के दरबार में जा पहुँचा
अरे वाह ! यह कोई सामान्य घोड़ा नहीं, अश्वरत्न है अश्वरत्न
ऐसा घोड़ा तो घुडसाल में भी नहीं
और फिर बिना सोचे समझे राजा ने घोड़े पर बैठकर एड़ लगा दी, घोड़ा जंगल की ओर ले भागा
कुछ गड़बड़ लगती है
र
बिना सही जानकारी के कोई कार्य नहीं करना चाहिये। कहीं कुछ...
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अपराध क्षण भर का
यह समाचार सुनकर शहर में भगदड़ मच गई। रानियाँ मूर्च्छित हो गईं और सैनिक घोड़ा पकड़ने के लिए पीछे-पीछे
भागे।
परन्तु हताश ! सैनिक राजा को खोज न सके
तभी एक व्यक्ति वहाँ से गुजरा
ये कराहने की आवाज !
आह !
आह
go
उधर घोड़ा राजा को एक भयानक जंगल में ले गया और गहरे गढ्ढे में गिरा दिया
आह ! बचाओ
3
आवाज को सुनकर वह गढ्ढे के पास आया
भाई ! तुम कौन हो ? ठहरो! अभी निकालता
हूँ
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मुक्ति कामिक्स
और वह राजा को निकाल कर अपनी झोपड़ी
की और ले चला
झोपड़ी में लिटाकर राजा की बेहोशी दूर करने का यत्न करने लगा।
थोडी देर बाद राजा को होश आया ।
अरे तुम
मैं यहाँ कहाँ हँ ?
कौन हो
मैं भीलों का राजा यमदंड हूँ, आप मेरे
जंगल में हैं।
तो राजा ने सारी घटना सुनाते हुए अपना परिचय दिया
मैं यह तो जानता था कि सोमशर्मा दुष्ट है,धोखेबाज है,परन्तु घोड़ा भी दुष्ट होगा...?
ठीक है राजन् ! आखिर जानवर ही तो है, जिसकी खाता है, उसकी निभाता है।
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अपराध क्षण भर का
और फिर शाम के समय
भोजन हेतु
पधारें
राजन् !
तो राजा ने सहर्ष शुद्ध भोजन स्वीकार किया
नहीं ! नहीं मैं शुद्ध शाकाहारी
बहुत ही स्वादिष्ट है
इस घनघोर जंगल में भी इतना रूप लावण्य और गुणवती भी... मुझे शादी का
प्रस्ताव... ।
देर रात तक राजा सोचता रहा
अब समझा, मेरी बेटी धार्मिक प्रवृत्ति की है, उसने ही क्रियापूर्वक
बनाया है।
राजा भीलकन्या के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ और उस पर मोहित भी...
दूसरे दिन भीलराज के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा तो...
यह तो मेरा अहो भाग्य होगा, परन्तु...
5
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मुक्ति कामिक्स
(परन्तु क्या ?/ निःसंकोच)
कहो
आपके तो बहुत-सी रानियाँ हैं, मेरी पुत्री तो दासी मात्र बनकर रह जावेगी। उसकी संतान
भी ऐसी ही रहेगी...
भीलराज ने अपनी पत्नी व पत्री से
सहमति माँगी।
नहीं ! नहीं! हम उसे पटरानी बनायेंगे। और उसका पुत्र राज्य का उत्तराधिकारी होगा
जैसा आप ठीक समझें...
शुभमुहूर्त में भीलराज यमदंड की पुत्री तिलकवती की शादी सानन्द सम्पन्न हई।
उसके बाद राजा ने अपने राज्य
को प्रस्थान किया।
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अपराध क्षण भर का
राजा के आगमन का समाचार सुनकर राज्य में खुशी छा
गई।
राजा अपने राज्य लौटकर राजकाज देखते हुए पटरानी तिलकवती के साथ जीवन-यापन कर रहा था कि एक दिन....
बधाई हो ! बधाई हो !!
राजन! पटरानी
साहिबा के पुत्ररत्न 71 हआ है...
अच्छा ! चिलाती के जन्म का शुभ समाचार...लो ये..
CHOTI
इस तरह काफी दिनों राज्य करते हुए राजा वृद्ध हो गया, उसे चिन्ता
काफी सोचकर राजा ने विशेष विद्वानों को बुलाया
इसके लिए तो राजकुमारों की बुद्धि परीक्षा करनी
चाहिए
मैं अब किस पुत्र को राज्य
दूं, वचन तो चिलाती को दिया है....
यही
उत्तम है।
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दूसरे दिन राजा ने राजकुमारों से सारी बात कही।
मुक्ति कामिक्स पिताश्री हम आपकी बात समझ गये हैं, हम अपनी योग्यता
की परीक्षा के लिए तैयार
प्रिय पुत्रो! कसौटी पर कसे बिना न सोना पहचाना जाता है और न ही उसका मूल्य ही मिलता है,
वैसे ही...
बात सुनकर राजा ने घड़े में ओस लाने का कहा।
परन्तु श्रेणिक ने रुई से केले के पत्ते पर रखी ओस को बटोरकर घड़ा भरा।
राजा की बात से सभी राजकुमार असमंजस्य में पड़ गये और... तत्पश्चात राजा ने दूसरी परीक्षा ली। लड्डुओं से भरी टोकरी के मुँह को बिना खोले लड्डू खाने को कहा।
परन्तु श्रेणिक ने टोकरी को जोर-जोर
से हिलाकर लड्डू फोड़ मुझे तो जोरों
डाले और उसमें से गिरे से भूख
चूरे का लगी है।
खाया
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अपराध क्षण भर का
जब दो परीक्षाओं में श्रेणिक जीत गया तो एक परीक्षा गुप्त रूप से ली गयी।
मेरे कपड़े
मेरा
भोजन
आग! आग भागो भागो।
परन्तु श्रेणिक छत्र-चमर, सिंहासन राजचिन्ह लेकर भागा...
सभी परीक्षाओं में
जीते श्रेणिक की बुद्धि से राजा प्रभावित भी हआ और चिन्तित भी...
राजा बनने के लक्षण तो श्रेणिक में हैं...। परन्तु अब चिलाती को
राज्य देने के मेरे वचन का क्या
होगा?
चिन्ता क्यों करते हैं राजन् ! अबकी बार वह नहीं जीत
सकेगा
योजनानुसार दूसरे दिन जब सभी को एक साथ भोजन परोस दिया। तभी अचानक.... हाय ! मेरे चूरमे
| अरे ! मेरा ही का क्या होगा
। चूरमा
बन गया
लड्डू
परन्तु श्रेणिक कुत्तों की तरफ भोजन फेकता गया और दूसरे हाथ से स्वयं खाता गया ।
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१०
मुक्ति कामिक्स राज्य प्राप्ति के सभी लक्षण धीरता-वीरता व सौभाग्य आदि श्रेणिक में देखकर तो राजा घोर चिन्ता में ही पड़ गया। उसने अपने मंत्री सुमति व अतिसार से विचार किया।
चिन्ता न करें। राजा के राजन् ! हमने
बस हमें तो योग्य तो श्रेणिक उपाय
आपकी आज्ञा ही है, परन्तु
सोच वचन तो...
लिया
चाहिए...
राजाज्ञा से वे मंत्री श्रेणिक के पास गये।
कुमार!
वाह! अब
हमसे ही अपराध पूछते हो। कल बड़े मजे से कुत्तों के बीच भोजन... छी...छी...छी.. शर्म आनी चाहिये
महाराजा आपसे सख्त नाराज हैं,अतः आपको यह देश छोड़कर...
परन्तु मेरा अपराध?
मंत्रीवर ! उस समय तो यत्न से भोजन की रक्षा ही योग्य थी। जो राजकुमार अपने भोजन पात्रों की ही रक्षा नहीं कर सकता, वह प्रजा की क्या रक्षा करेगा? अतः आपका कहना न्यायसंगत नहीं है।
अरे! अब बहस का समय नहीं है। अभी तो शान्ति ही श्रेष्ठ है, सिंह भी शान्ति से दो कदम पीछे हटकर अपने लक्ष्य
को जाता है। अतः तुरन्त यह देश छोड़ने में ही
भलाई
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अपराध क्षण भर का
श्रेणिक की माँ व प्रजा ने जब यह
तब श्रेणिक ने काफी सोचासमझा; और माँ को बिना बताये ही चल दिया।
Jहा देव ! ऐसा कौन-सा
अपराध किया, जो पुत्र वियोग सहना पड़ रहा है।
इधर भूखे-प्यासे जंगल में भटकते श्रेणिक को इन्द्रदत्त नामक सेठ मिला तो..
और वे नन्दिग्राम के सरपंच के
यहाँ पहुँचे
चलो मामाश्री! किसी पास के गाँव में चलकर भोजन तलाश करें।
चलो भागो यहाँ से मैं तो तुम्हें पानी भी न दूँ, भोजन का तो प्रश्न ही नहीं... पता नहीं कहाँ-कहाँ से...
इस तरह अपमानित भूखा-प्यासा श्रेणिक बौद्ध साधुओं के मठ में जा पहुंचा।
भविष्य में यह मनुष्य निश्चित रूप से राजा होगा। इससे उत्तम व्यवहार करना अच्छा रहेगा।
यह आश्रम आपका ही है! यहाँ कुछ दिन रहकर इसे शोभित करें।
आइये-आइये...नरश्रेष्ठ! पहले भोजनादि से प्रसन्न होइयेगा।
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मुक्ति कामिक्स बौद्धमठ में कुछ दिनों रहकर शिक्षा प्राप्त करने पर एक । बौद्धाचार्यों की सेवा सहानुभूति व उपदेश से प्रभावित दिन बौद्धाचार्य ने कहा...
होकर श्रेणिक बौद्ध बन गया। आप बौद्धधर्म स्वीकार कर लें! इससे आपको
गच्छामि राज्य व सुख की निःसन्देह प्राप्ति होगी।
9/
बुद्धं शरणं
श्रेणिक बौद्धधर्म अपनाकर अपने "मामाश्री" के साथ दूसरे गाँव चल दिया।
परन्तु मामाश्री कुछ न समझे और मौनपूर्वक चलतेचलते उन्हें एक नदी मिली तो वे नदी पार
करने लगे। पहले जूते उतार लूँ, परन्तु इसने क्यों पहन। लिये? अभी तक तो नंगे पैर चल रहा था। मूर्ख लगता है...
मामाश्री रास्ता बहुत लम्बा है, क्यों न हम जिह्वा रूपी रथ पर
सवारी करें।
नदी पार करने के बाद वे काफी चल दिये तो...
वृक्ष के नीचे इन्द्रदत्त ने छतरी बन्दी कर ली, जबकि श्रेणिक ने खोल दी।
चलो! वहाँ वृक्ष के नीचे विश्राम
कर ले
यह कोई साधारण मूर्ख नहीं ! लोग तो धूप में छतरी लगाते हैं, जबकि यह यहाँ खोल रहा है !
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अपराध क्षण भर का
आराम करने के बाद वे फिर चलने लगे, चलते-चलते वे एक शहर पहुंचे।
"मामाश्री' वह स्त्री
बँधी है या खुली, तथा यह शहर उजड़ा हुआ है या बसा
हुआ?
भानजे! तेरे उत्तर तो नहीं मालूम, पर इतना अवश्य पता है कि तेरी बुद्धि उजड़
चुकी है, मूर्खराज कहीं
का...
श्रेणिक इस प्रकार के अटपटे प्रश्न करते हुए आगे बढ़ रहा था कि तभी...
परन्तु श्रेणिक को मूर्खाधिराज समझकर इन्द्रदत्त आगे बढ़े जा रहा था कि तभी उसे अपना गाँव दिखा।
'मामाश्री" यह मनुष्य आज मरा है कि जन्म
से मरा है ?
मैं तो चला गाँव, पर तूं यहीं ठहर,कहीं न जाना, समझे ! किसी
को भेजूंगा....
श्रेणिक वहीं बैठ गया।
घर पहुँचकर सेठ ने रास्ते का सारा समाचार कह सुनाया।
मुझे तो श्रेणिक बहुत मूर्ख लगा बेटी।
अरे ! वह मूर्ख नहीं, बहुत 1 बड़ा विद्वान
है विद्वान।
वह कैसे?
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मुक्ति कामिक्स .
पिता द्वारा श्रेणिक के आचरण को सुनकर नन्दश्री बहुत प्रभावित हुयी; उसने कहा...
1. तुम्हें मामा कहकर वह तुमसे स्नेह चाहता था। 2. जिह्वा रथ का अर्थ कथा-कौतूहल करना है। 3. जल में जूता न पहिनने से काँटे, पत्थर व सर्प आदि
के काटने का भय रहता है। 4. वृक्ष के नीचे छतरी न लगाने से पक्षियों की 'बीट'
गिरने का भय रहता है। 5. वही शहर बसा हुआ है, जहाँ जिनमन्दिरादि
हैं और विवाहिता स्त्री बँधी हुई व कुँवारी
मुक्त है। 6. स्वाध्यायी, दानी, धर्मात्मा के मरने पर हाल
का मरा हुआ व इनसे रहित जन्म से मरा हुआ है।
यह जानकर इन्द्रदत्त बहुत प्रभावित हुआ और "नन्दश्री" ने रूपवान श्रेणिक को बुलाने अपनी दासी को सब कुछ समझाकर भेज दिया।
आपको मेरे स्वामी ने निमन्त्रित
किया है।
कमाल है? कान में तालवृक्ष का पत्ता क्यों पहिनें थी? और घर भी नहीं बताया...! ओह !
अब समझा...
यह तो ठीक है, परन्तु उनका घर कहाँ
है और किस जगह है।
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अपराध क्षण भर का
इधर नन्दश्री श्रेणिक के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी...
दरवाजे पर आने के समय गिलास भर पानी लाया गया...
कहाँ तो इतना कीचड़ और
सुन सखी ! कुमार के आने का समय हो गया ! दरवाजे पर मैंने जैसा करने को कहा, वैसा कर दिया। अब देखती
जब श्रेणिक 'नन्दश्री' के द्वार पर आया...
गजब है अभी तो बरसात भी
नहीं है, शहर में
कहीं भी कीचड़
नहीं था, यहाँ
ही क्यों है ? और ईटें भी रखी हैं, इन पर पैर रखूँगा तो गिरूँगा... हँसी होगी....
कहाँ इतना-सा
पानी ?
इससे कीचड़ धुल सकेगा ?
हूँ वह
कितना
चतुर है....
उधर श्रेणिक दासी के दिखाये संकेत को खोजने
लगा...
अरे ! वही है तालवृक्ष... उसी का पत्ता दासी ने कान
में लगाया था । वही घर है।
फिर तो श्रेणिक ने कीचड़ में ही चलने का निर्णय लिया।
15
HO
आश्चर्य ! वाह ! ऐसी चतुराई और कहाँ
एक क्षण विचारकर श्रेणिक ने तालवृक्ष के पत्तों व लकड़ी से खुरचकर कीचड़ साफ की और...
अब इस थोड़े से जल से पैर धोलूँ ।
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१६
महल में प्रवेश करने पर "नन्दश्री” ने श्रेणिक से भोजन के लिए निवेदन किया।
हे मनोहरांगी ! मैं भोजन वही करूँगा, जो मेरी
प्रतिज्ञा के
अनुसार होगा।
"नन्दश्री" ने ३२ चावलों का रहस्य समझाकर दासी को
बाजार भेजा...
ये मंत्रित गोलियाँ
हैं, जिसके पास
होगी, वह सदा
सफल
रहेगा...
पर...
आपकी प्रतिज्ञा ।
4000
अच्छा ! ऐसा है, तो ये लो अशर्फी
और दो ये गोली।
CRECE
"नन्दश्री" के द्वारा आग्रहपूर्वक पूछने
पर...
इन ३२ चावलों से ही जो दूध-दही युक्त
सरस
भोजन
मुक्ति कामिक्स
बना
सके
ठीक है, ऐसा ही होगा
चावल से बनी गोलियों को बेचकर उसने दूध-दही खरीदकर मिष्ठान बनाये।
वाह ! वाह ! भोजन तो बहुत ही स्वादिष्ट है.....
इस तरह कुछ दिनों रहते हुए उनमें परस्पर प्रेम हो गया। उनके प्रेम को देखकर सेठ इन्द्रदत्त ने
शुभमुहूर्त में विवाह
कर दिया....
जोड़ी भी क्या खूब बनी
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शव
अपराध क्षण भर का | उसी नगर में रहते हुए नन्दश्री ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया।
तभी अचानक श्रेणिक के एक खास व्यक्ति ने पिता की मत्यु व चिलाती के राजा होने का सन्देश व एक गप्त पत्र लाकर दिया।
बिल्कुल तुम्हारे जैसा है, बुद्धिमान और
अभय...
कैसा है, मेरा लाल
योजनानुसार श्रेणिक ने अपने पिता के घर । | जाने का निर्णय लिया..
श्रेणिक के आने का समाचार मगध देश में फैल गया।
अब हम पर हो रहा अत्याचार समाप्त हो जायेगा।
श्रेणिक आये समझो हमारी शान्ति आ गयी।
प्रिये! मेरा जाना जरूरी है। अतः जब तक मैं न बुलाऊँ। तुम अपने पिता के घर पर ही रहना... - जब चिलाती ने यह सुना तो वह मारे डर
के कुछ सोना चाँदी
लेकर गायब
हो गया।
m
उधर सारे मंत्री व नागरिक श्रेणिक को राजा बनाने के पक्ष में हो गये और उसे गाजे-बाजे के साथ
राजदरबार में प्रवेश कराया।
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महाराजा श्रेणिक को एक दिन बीते दिन याद आने लगे।
मुक्ति कामिक्स फलस्वरूप राजा ने मंत्री को बुलाकर नन्दिग्राम खाली करने का आदेश दिया।
नन्दीग्रामवासियों ने मुझे बुरे दिनों में भोजन तक नहीं दिया था, अब अपमान
का बदला लेकर रहूँगा।
पर महाराज! इससे तो आपकी बहुत बदनामी होगी।
जब श्रेणिक ने पूरी घटना कह सुनायी तो... मंत्रियों ने क्रोध को शान्त करने की कोशिश की।
महाराज! अन्याय से तो राज्य में पापियों की ही संख्या
बढ़ेगी।
राजन् ! आप क्षमाशील हैं, कृपालु हैं, आप उन्हें क्षमादान
करें तो श्रेष्ठ रहेगा।
SH
स्वामी! राजा के न्यायवान होने से प्रजा भी न्यायप्रिय
होती है।
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अपराध क्षण भर का नीतियुक्त वचनों से राजा का क्रोध तो शान्त हो गया। परन्तु बदला लेने की युक्ति सोचने लगा। एक दिन...
बकरा लेकर राजा का नौकर नन्दि ।
गाँव चल दिया...
देकर आओ।
जाओ! इस बकरे को नन्दिग्राम वालों को
और उनसे कहो कि इसे खूब खिलायें। परन्तु सावधान ! यह न तो मोटा होवे न ही वजन बढ़े। अन्यथा राजदण्ड..
सभी
गाँववालों ने जब राजाज्ञा सुनी तो उनके होश उड़ गये।
अब हमें क्या
करना चाहिये?
लोग उस बच्चे के पास गये उसने कहा...
इसे दिन
में खूब
अरे, याद आया अपने गाँव में अभी-अभी एक बुद्धिमान बच्चा आया है। चलो वहाँ ही कुछ
urnतरकीब...
खिलाओ।
T
एक माह बाद जब बकरे को राजदरबार में ले जाया गया तो...
और रात में शेर के सामने बाँध दो
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२०
श्रेणिक ने दूसरी आज्ञा दी इस हाथी का वजन तौलकर ले आओ
नाव पर खड़ा करके जितनी डूब जाए उतने पर निशान लगाओ।
गाँव वाले हाथी का वजन बतलाने राजदरबार गये ।
आश्चर्य है ! मैंने दण्ड देने के इतने बहाने किए परन्तु ये आड़े हाथ नहीं आ रहे।
मुक्ताि
गाँव वाले फिर उस बालक के पास गये।
चिन्तित होने की बात नहीं इसे नदी के किनारे ले चलो।
अब इस पर इतने ही निशान तक कंकड़ पत्थर डालकर उन्हें तराजू से तौल लो।
असफलता देखकर श्रेणिक बहुत क्रोधित व दुःखी हुआ । उसने पुनः आज्ञा दी।
जाओ ! शीघ्र ही बालू की रस्सी बनाकर लाआ वर्ना मृत्युदण्ड...
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अपराध क्षण भर का
इस आदेश से सभी चिन्तित हुए।
सभी बालक के पास गये उसने उपाय बताया।
हम ऐसा ही करेंगे।
सही उत्तर सुन श्रेणिक सोचने लगा...
वहाँ अवश्य ही कोई बुद्धिमान आया है, इनमें इतनी बुद्धि है ही
नहीं...
यह बालक न होता तो हम कभी के...
वह तो हमारा भगवान है।
दूसरे दिन वे श्रेणिक के यहाँ..
यह सोचकर श्रेणिक ने गुप्तचरों को आदेश दिया ।
पता करो, इनको कौन बचने का रास्ता बतलाता है।
21
राजन् ! बालू की दूसरी रस्सी मिले तो वैसी ही सेवा में हाजिर कर दें अन्यथा हमारे अपराध क्षमा कर दें।
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गुप्तचर गाँव जाते हैं।
मुक्ति कामिक्स जब श्रेणिक को गुप्तचरों ने समाचार |
दिया
यही सबसे बुद्धिमान - बालक है।
सुना है, यही राजकुमार 'अभय है।
रानी नन्दश्री
व पुत्र अभय को उत्सवपूर्वक ले आओ।
एक दिन किसी चित्रकार ने एक चित्र भेंट किया।
ये सुन्दरी कौन है? किस देश के राजा की पुत्री है ?
____ और इस महल की रानी कैसे बन सकती है।
राजन् ! सिन्धु देश के राजा चेटक की सात कन्याओं में यह छठवीं
है, परन्तु...
परन्तु क्या...?
मैं तो बौद्ध हूँ,
पर एक उपाय है...
वह वीतरागी देव-शास्त्र-गुरु भक्त श्रावक को ही अपनी कन्या
देता है।
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अपराध क्षण भर का
पिता की आज्ञा से 'अभय' जैन श्रेष्ठियों को तैयार करके चेटक जा पहुँचा और सावधानीपूर्वक जैन होने का नाटक करते हुए पूजा पाठ करने लगा...
हम जौहरी बच्चे हैं और अनेक
देशों में घूमते हुए
यहाँ आये हैं। यहाँ कुछ दिन ठहरना चाहते हैं।
राज कन्याएँ प्रतिदिन इनकी पूजन भक्ति देखकर अत्यधिक प्रभावित हुईं, एक दिन...
आप धन्य हैं। आप जैसा भक्त,
इनके बहुत धर्मात्मा होने की खबर राजा चेटक तक भी पहुँची। तभी अभय वहाँ पहुँचा ।
ज्ञानवान व रूपवान हमने आज तक नहीं देखा...
आपका देश कौनसा है व वहाँ के राजा कौन है ?
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हाँ, हाँ ! क्यों नहीं आप तो सज्जन हैं, हमारे ही महल में ठहरें ।
हम मगध
देश के जैनधर्म भक्त, रूपवान, गुणवान राजा श्रेणिक की प्रजा हैं।
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मुक्ति कामिक्स
राजा श्रेणिक के ज्ञान की प्रशंसा सुनकर वे कन्याएँ उनसे विवाह के लिए ललचाने लगी एक दिन वे चुपचाप अभय के पास आयीं।
कहाँ तो वे पुरुषोत्तम, और कहाँ हम...
अब हमारी
आँखों में नींद कहाँ, जब तक...
महान श्रेणिक हमारे पति कैसे हों, वह उपाय बतावे।
परन्तु वे ही हमारे स्वामी हों...नहीं तो यह जीवन बेकार है।
उन कन्याओं की बातें सुनकर अभय मन की मन प्रसन्न हुआ।
और एक गुप्त सुरंग बनाकर उन्हें भगा ले गया।
सुरंग के बाहर चेलना ही आयी।
और बहिन चंदना, रास्ते से लौट गयी। चेलना को रथ पर बैठाकर राजगृह ले आये।
जैसी
'आज्ञा।
सेठ इन्द्रदत्त के यहाँ चेलना को ठहरा दो।
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अपराध क्षण भर का
यह सुनकर चेलना भयभीत हुई और उसने बच्चे को जंगल में फिकवा दिया। परन्तु...
श्रेणिक से शादी के बाद चेलना ने 'कुणिक' को जन्म दिया, तभी एक ज्योतिषी आया।
अपने पुत्र को इतना प्यार कर रही हो, पता है यही अपने पिता की मृत्यु का कारण होगा।
नहीं, हर्गिज नहीं। उसे वापस ले आओ।
एक दिन बौद्ध साधुओं के राजमहल में आने पर उसे अचानक ध्यान आया।
अरे यहाँ तो कभी जैन साधु नहीं आते ? जिन पूजन भी नहीं होता, यहाँ
तो सभी विधर्मी हैं।
आह! अपने को जैन बताकर पुत्र अभय ने ठग लिया है। मैंने कौनसा पाप किया था, जो जैनधर्म से विमुख होना पड़ा।
दुःखी चेलना ने खाना-पीना छोड़ दिया। जब श्रेणिक को पता चला तो वे बहुत दुखी हुए और बहुत समझाया, परन्तु हार गये।
स्वामी जैनधर्म व जैन साधु
ही श्रेष्ठ हैं। ये जीव जन्तुओं पर दया भी करते हैं। फिर आप ही बतावें कि हम इस सुखकारी धर्म को कैसे छोड़ें?
ठीक है, जो तुम्हें अच्छा लगे वही करो। परन्तु दुखी न
रहो।
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मुक्ति कामिक्स
यह जानकर बौद्ध साधु भयभीत होकर
श्रेणिक के पास आये।
अनुकूल उत्तर पाकर रानी धर्माराधना करते हुए महल में ही सभी को जैनागम पढ़ाने लगी।
सुना है रानी... इससे तो बौद्ध धर्म रसातल में पहुँच जाएगा।
मैंने बहुत समझाया.. पर वह मानती ही नहीं।
तब बौद्ध साधु रानी चेलना को समझाने आये।
देख रानी! तेरा
जैनधर्म कदापि श्रेष्ठ नहीं। भूखों व नंगों का यह धर्म ज्ञान-विज्ञान रहित है।
अरे इन दीन-दरिद्रों की सेवा करोगी, तो ऐसा ही फल पाओगी। हमने अपनी सर्वज्ञता से ऐसा जाना।
नहीं ! नहीं !
जैन साधु तो महान शूरवीर, निर्विकारी व विद्वान होते हैं। तुम लोग
डरपोक व कायर हो इसीलिए शहर में रहते हो, और अपने पापों को ढकने के लिए वस्त्र पहिनते हो...
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अपराध क्षण भर का
अगले दिन उसने सभी बौद्ध साधुओं को भोजन कराया।
भोजनोपरान्त जब वे जाने लगे तो....
मेरे जूते कहाँ हैं ?
यहीं तो...
पर आप तो सर्वज्ञ हैं, आपको यह भी पता नहीं, तो मेरे अगले जन्म का क्या पता होगा
अनुत्तरित होकर साधु बहुत अपमानित हुए।
और राजा से शिकायत की। राजा श्रेणिक, रानी को नीचा दिखाने का अवसर तलाशने लगा। एक दिन जंगल में...
अरे! वो नंगा कौन खड़ा है ?
राजन् ! यही तो गंदा, मूर्ख व अभिमानी
चेलना का गुरु है।
इतना सुनते ही क्रोध से तमतमाये श्रेणिक ने उन पर भयंकर शिकारी कुत्ते छोड़ दिये।
परन्तु जब कुत्तों ने साधु की शांत ॥ मुद्रा देखी तो...
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मुक्ति कामिक्स साँप को मारकर यशोधर मुनि के गले में डालकर वह चला गया।
इस दृश्य से राजा और क्रोधित हुआ, तभी उसे एक साँप दिखा और
लगता है, मांत्रिक है, कुत्तों का मुँह बन्द कर दिया...तो ये ले।
श्रेणिक राजा ने तीसरे दिन यह घटना चेलना को सुनायी।
हाय ! यह तो बहुत
बुरा किया। काश ! मैं कुँवारी
ही रहती।
नहीं...नहीं..
वे साधु तो उपसर्ग समझकर पर्वत की तरह अचल रहकर ध्यान में लीन
हो गये होंगे..
अरी ! बावली क्यों होती है ? वह पाखण्डी तो अब तक साँप फेंक कर भाग गया होगा।
ऐसी बात है ? तो चलो अभी चलकर देख लेते हैं, सत्य सामने
आ जायेगा।
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अपराध क्षण भर का
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रात्रि में ही वहाँ जाकर देखते हैं, ध्यान में लीन मुनि का शरीर चाटियों से भरा पड़ा है।
और जमीन में खांड डालकर चीटियों को शरीर पर से
उतारने
लगी...
आह ! भयंकर उपसर्ग...शरीर को काट लिया है, ओह! कितनी सूजन...कोई उपाय... ।
इस तरह चीटियों को दूर किया। सुबह मुनिराज ने दोनों को ही आशीर्वाद दिया।
अरे ! ये क्या ? आश्चर्य, मैंने तो अहित किया, फिर भी मुझे धर्मवृद्धि का आशीर्वाद। ये कितने महान हैं, और मैं सचमुच में निन्दा का पात्र...
मेरी सुप्त
सामर्थ्य को ललकारने वाले तुमने मेरे मन की बात कैसे जान ली?
अरे ! अपनी भूल पर इतना खेद क्यों? वह तुम्हारा शिक्षक है, उससे शिक्षा
ग्रहण करके भूले हुए भगवान को याद करो। भगवान बनने के सामर्थ्य को जानो, पहिचानो, स्वीकारो...
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मुक्ति कामिक्स
कुछ दिनों बाद विपुलाचल पर्वत पर भगवान महावीर का समवसरण आया। श्रेणिक ने वहाँ जाकर हजारों प्रश्न पूछे।
भगवन् ! मेरे मुनि बनने के भाव क्यों
नहीं होते?
क्योंकि तुमने नरक का बन्ध कर लिया है, परन्तु वहाँ से निकलकर उत्सर्पिणी के प्रथम काल में ('महापद्म' नामक पहिले तीर्थंकर होगे।
उधर राजा बना कुणिक
सोचने लगा।
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यह सुनकर राजा अपने पुत्र कुणिक को राज्य देकर स्वाध्यायादि करने लगा
पिता ने बाल्यकाल में । मुझे जंगल में ] फिकवा दिया था।
फलस्वरूप उसने मंत्री
को आदेश दिया।
एक दिन जब कुणिक भोजन कर रहा था तो...
जाओ! उस दुष्ट को बंदी बनाकर घोर यातना दो...
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अपराध क्षण भर का परन्तु कुणिक ने कुछ भी ध्यान नहीं दिया...उसने
माँ! मेरे समान इस जगत् में पुत्र मोही कोई न होगा।
अरे ! तू ही क्या, सभी का पुत्र मोह ऐसा ही होता है। याद है, बचपन में जब
तेरी अंगुली में फोड़ा हुआ था, तो दुर्गन्ध की परवाह न करके तेरे पिता ने ही मुँह में तेरी अंगुली डालकर मवाद चूसकर फेंका था।
तब तुझे आराम मिला था।
सारी बात जानकर कुणिक का भ्रम दूर
जिसने तुझे पढ़ाया-लिखाया राज्य-सम्पदा दी। उसके साथ ऐसा क्रूर व्यवहार, धिक्कार है तुझे अरे पापी ! कृतघ्नी! उन्हें मुक्त कर और चरणों को छूकर माफी माँग।
हाँ माँ ! मैं नीच हूँ,
पशुतुल्य हूँ। क्षमा कर माँ मैं अभी जाकर उन्हें छुड़ाता हूँ।
तभी कारागृह की ओर आते कुणिक को देखकर श्रेणिक सोचता
इसी घबराहट में वह पैनी सलाखों से जा टकराया और..
इतने दिनों से भूखा-प्यासा..... उस पर इतना अपमान...हे भगवान
और नहीं सहा जाता...अरे! शायह यही... अब और दुःख
आह ! मैं अपराधी क्षणभर
का...
देने......
ना
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मुक्ति कामिक्स
पिता की मृत्यु देखकर कुणिक के तो होश ही उड़ गये। चेलना बेहोश हो गई।
सम्पूर्ण देश में हा-हाकार मच गया।
आह ! अपराधी मैं क्षणभर का
अपराधिनी मैं...
क्षणभर...
और फिर इस असार संसार का स्वरूप पहिचान कर
भवभोगों से सर्वथा उदासीन होकर चेलना रानी ने चंदना नाम की आर्यिका से दीक्षा ले ली।
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卐 हमारे प्रकाशन 1. चौबीस तीर्थंकर महापुराण (हिन्दी)
50/[528 पृष्ठीय प्रथमानुयोग का अद्वितीय सचित्र ग्रंथ ] 2. चौबीस तीर्थंकर महापुराण (गुजराती)
40/[483 पृष्ठीय प्रथमानुयोग का अद्वितीय सचित्र ग्रंथ ] 3. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 1) 4. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 2) 5. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 3)
(तीनों भागों में छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह है।) 6. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 4) महासती अंजना 7. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 5) हनुमान चरित्र
7/8. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 6) (अकलंक-निकलंक चरित्र) 7/9. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 7) (अनुबद्धकेवली श्री जम्बूस्वामी) 12/10. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 8) (श्रावक की धर्मसाधना) 7/11. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 9) (तीर्थंकर भगवान महावीर) 12. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 10) 13. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 11) 14. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 12) 15. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 13) 16. जैनधर्म की कहानियाँ (भाग 14) 17. अनुपम संकलन (लघु जिनवाणी संग्रह) 18. पाहुड़-दोहा, भव्यामृत-शतक व आत्मसाधना सूत्र 19. विराग सरिता (श्रीमद्जी की सूक्तियों का संकलन) 20. लघुतत्त्व स्फोट (गुजराती) 21. भक्तामर प्रवचन (गुजराती) 22. मुक्ति कॉमिक्स (प्रथम भाग)
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________________ श्रीमती धुड़ीबाई खेमराज गिड़िया ग्रंथमाला का 22वाँ पुष्प मंगलायतन, अलीगढ़ में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव के अवसर पर (31जनवरी, 2003) प्रथम संस्करण - 6000 ©सर्वाधिकार सुरक्षित न्यौछावर - दस रुपये मात्र 卐प्राप्ति स्थान॥ अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, शाखा-खैरागढ़ श्री खेमराज प्रेमचंद जैन, 'कहान-निकेतन' / खैरागढ़-491881, जि. राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-4, बापूनगर, जयपुर-302015 ब्र. ताराबेन मैनाबेन जैन, 'कहान रश्मि', सोनगढ़ - 364250 जि. भावनगर (सौराष्ट्र) डॉयोगेशजैन, अनेकान्त फार्मा., अलीगंज, एटा (उ.प्र.) साहित्य प्रकाशन फण्ड 5001/- रुपये देने वाले- * एक मुमुक्षु बहन, अमेरिका। 1001/- रुपये देने वाले- * झनकारीबाई खेमराज बाफना चेरिटेबल ट्रस्ट,खैरागढ़। *श्रीमती अवनी कुनाल मेहता * श्री ताराचन्द सोगानी, जयपुर। 501/-रुपये देनेवाले-*श्री खेमराज प्रेमचन्द जैन हस्तेश्री अभयकमार. खैरागढ़ श्रीमती देलाबाई शोभा जैन हस्तेश्री मोतीलाल जैन, खैरागढ़ * ब्र. ताराबेन मैनाबेन जैन, सोनगढ़ * श्री पुष्पाबेन जैन भोपाल, दिल्ली * श्री मनोहरभाई अभयभाई कोठारी ह.श्री इन्द्रजीतभाई कोठारी, मुम्बई * श्री प्रभाकर रामचन्द्र * श्री राजेशकुमार कमलचन्द * श्रीमती सुलोचना ध.प. श्री प्रवीणचन्द * श्री अरविन्दकुमार स्वरूपचन्द *रीटाबेन जयन्ती जिनल, मुम्बई * एक मुमुक्षु बहन, घाटकोपर। ___401/- रुपये देने वाले-* श्रीमती रत्नमालाबाई जैन, दिल्ली। 251/- रुपये देने वाले-* श्रीमती मीनु अरुण जैन, दिल्ली * मनन चेतन डगली, घाटकोपर * विराली कीरिटभाई झवेरी, मुम्बई। 201/- रुपये देने वाले-* श्रीमती वसुमती विपिनशाह, घाटकोपर * श्रीमती रमीली कान्तीलाल शाह, मुम्बई * श्री दुलीचन्द कमलेशकुमार ह. जिनेश जैन, खैरागढ़ * श्रीमती स्मिताबेन किरणभाई मोंडिया, अमेरिका * श्रीमती मनोरमादेवी विनोदकुमार, जयपुर * श्री घेवरचन्द राजेन्द्रकुमार डाकलिया, राजनांदगांव * श्री निर्मलचन्द शरदकुमार जैन, डोंगरगढ़ * श्रीमती अचरजकुमारी निहालचन्द जैन, जयपुर * श्री ममता-रमेशचन्द जैन शास्त्री, जयपुर। 151/- रुपये देने वाले-* श्रीमती मीना सेठ, पारला। 101/- रुपये देने वाले-* श्री प्रमोदकुमार गोविन्दजी विदिशा* श्री निलेश शामजी शाह, गोरेगाँव * श्री विपुल शामजी शाह, गोरेगॉव * श्रद्धा पूजा सतीश शाह, मलाड * श्री ऋषभ-रुचि-चन्द्रकान्त कामदार,राजकोट* अनुभूति विभूति अतुल जैन, मलाड* आयुष्य संजय जैन, दिल्ली* सम्यक् अरुण जैन, दिल्ली* सार्थक अरुण जैन, दिल्ली* विवेक जैन मुकेश जैन, दिल्ली* श्रीमती पताशीबाई तिलोकचन्द धा* श्रीमती कंचनदेवी रजनी जैन ह. अनुभूति-चेतना,खैरागढ़ * श्री फूलचन्द चौधरी, मुम्बई * श्री जयन्तीभाई डी. दोशी, दादर * श्रीमती शोभाबाई चौधरी ह. श्री रतनलाल चौधरी, यवतमाल। मुद्रण : जैन कम्प्यूटर्स, जयपुर फोन : 0141-2700751 फैक्स : 0141-2709865