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प्रकाशकीय दिनांक 26 दिसम्बर, 1988 से प्रारम्भ हुई श्रीमती धुड़ीबाई खेमराज गिड़िया ग्रन्थमाला अपने विगत 14 वर्षों से निरन्तर प्रथमानुयोग के आधार पर बाल साहित्य प्रकाशित करने में अग्रणी रही है। अबतक ग्रन्थमाला के माध्यम से जैनधर्म की कहानियों के 14 भागों के रूप में 2 लाख 22 हजार प्रतियाँ एवं चौबीस तीर्थंकर महापुराण (हिन्दी व गुजराती) की 24 हजार प्रतियाँ जन-जन में पहुंच चुकी हैं, फिर भी उनकी निरन्तर माँग बनी हुई है।
___ कहा जाता है कि बाल्य-अवस्था में जो संस्कार पड़ जाते हैं, वे अमिट हो जाते हैं। आज के इस दूरदर्शन के युग में बालकों को सही दिशा देने के लिए इसप्रकार के सहज शिक्षाप्रद एवं बोधगम्य बाल साहित्य की जरूरत बहुत महसूस की जा रही है, परन्तु अभीतक मात्र कहानियों के माध्यम से ही उसकी पूर्ति हो रही थी, पर अब हम इस नई कड़ी के रूप में खास कर 5 से 10 तक वर्ष के बालकों को ध्यान में रखते हुए “मुक्ति कॉमिक्स" का प्रकाशन प्रारम्भ करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं, जिसका प्रथम भाग आपके हाथों में है।
आशा है हमारा यह प्रयास अवश्य ही बालकों के साथ आप सभी को भी लाभप्रद सिद्ध होगा। आप इसे और अधिक उन्नत बनाने हेतु अपना सुझाव व सहयोग अवश्य भेजें।
प्रस्तुत कृति की कीमत कम करने में जिन्होंने सहयोग दिया है अथवा ग्रन्थमाला के सदस्य बनकर सहयोग किया है। हम उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं एवं आशा करते हैं कि भविष्य में भी सभी इसीप्रकार सहयोग देते रहेंगे। अन्त में, हम कॉमिक्स के लेखक डॉ. योगेशचन्द्र जैन, रेखाकार श्री त्रिभुवन सिंह, रंगकार श्री मनमोहन सोनी एवं मुद्रक जैन कम्प्यूटर्स के विशेष आभारी ह। मोतीलाल जैन
प्रेमचन्द जैन अध्यक्ष
साहित्य प्रकाशन प्रमुख
सम्पादकीय “अपराध क्षणभर का" भले ही तीर्थंकर महावीर के शिष्य राजा श्रेणिक के जीवन पर आधारित घटनाओं को रेखांकित कर रहा है, परन्तु यह श्रेणिक व चेलना के जीवन की व्याजोक्ति में सम्पूर्ण मानव जीवन के आपराधिक परिणामों का एक चित्रांकन है। अपराधों को अंजाम देने के क्षण बहुत लम्बे नहीं हुआ करते, परन्तु उसके परिणाम व बदनामी के काल बहुत कष्टदायी एवं दीर्घजीवी हुआ करते हैं।किसी ने कहा है – “कुछ लम्हे ख़ता करते हैं, परन्तु सदियाँ सजा पाती हैं।"
उपरिलिखित लोक-सिद्धान्त से हमारा पाठक भी शायद सहमत होगा, और सम्पूर्ण श्रेणिक चरित्र से ऐसा ध्वनित भी होता है। अतः हमें अपने परिणामों के सुधार का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए। जब श्रेणिक के कुछ क्षण के तीव्र परिणाम तीसरे नरक गति के बन्ध के कारण हुए तो हमारे ऐसे सतत होने वाले परिणामों से क्या गति होगी, इसका गम्भीर विचार एकान्त क्षणों में हमें करना चाहिए, यही इस चित्रकथा के लिखने-पढ़ने का उद्देश्य है, आशा है, सुधी-बालमन इस उद्देश्य की पूर्ति करेगा। ऐसी भावना के साथ....
- डॉ. योगेशचन्द्र जैन, अनेकान्त फार्मा., अलीगंज