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मुक्ति कामिक्स
राजा श्रेणिक के ज्ञान की प्रशंसा सुनकर वे कन्याएँ उनसे विवाह के लिए ललचाने लगी एक दिन वे चुपचाप अभय के पास आयीं।
कहाँ तो वे पुरुषोत्तम, और कहाँ हम...
अब हमारी
आँखों में नींद कहाँ, जब तक...
महान श्रेणिक हमारे पति कैसे हों, वह उपाय बतावे।
परन्तु वे ही हमारे स्वामी हों...नहीं तो यह जीवन बेकार है।
उन कन्याओं की बातें सुनकर अभय मन की मन प्रसन्न हुआ।
और एक गुप्त सुरंग बनाकर उन्हें भगा ले गया।
सुरंग के बाहर चेलना ही आयी।
और बहिन चंदना, रास्ते से लौट गयी। चेलना को रथ पर बैठाकर राजगृह ले आये।
जैसी
'आज्ञा।
सेठ इन्द्रदत्त के यहाँ चेलना को ठहरा दो।