Book Title: Apradh Kshan Bhar Ka
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 26
________________ 24 मुक्ति कामिक्स राजा श्रेणिक के ज्ञान की प्रशंसा सुनकर वे कन्याएँ उनसे विवाह के लिए ललचाने लगी एक दिन वे चुपचाप अभय के पास आयीं। कहाँ तो वे पुरुषोत्तम, और कहाँ हम... अब हमारी आँखों में नींद कहाँ, जब तक... महान श्रेणिक हमारे पति कैसे हों, वह उपाय बतावे। परन्तु वे ही हमारे स्वामी हों...नहीं तो यह जीवन बेकार है। उन कन्याओं की बातें सुनकर अभय मन की मन प्रसन्न हुआ। और एक गुप्त सुरंग बनाकर उन्हें भगा ले गया। सुरंग के बाहर चेलना ही आयी। और बहिन चंदना, रास्ते से लौट गयी। चेलना को रथ पर बैठाकर राजगृह ले आये। जैसी 'आज्ञा। सेठ इन्द्रदत्त के यहाँ चेलना को ठहरा दो।

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