Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi Author(s): H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 4
________________ उपक्रम श्री हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित प्राकृत व्याकरण ('सिद्धहेमचन्द्र-शब्दानुशासन" का आठवाँ अध्याय)गत 'अपभ्रंश व्याकरण', गुजराती आदि के ऐतिहासिक अध्ययन और विकासकी दृष्टिसे तथा अपभ्रंश काव्य आदि साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से बहुत उपयोगी है । संस्कृत और प्राकृत की तुलना में अपभ्रश का अध्ययन करनेवालों की संख्या बहुत अल्प है। दूसरे आम अध्येताओं में एक धारणा यह भी है कि अपभ्रंश कलिष्ट तथा दुरुह है । आज ऐसे वातावरण में इस भ्रान्त और अनुचित धारणा को निराधार प्रमाणित करने में सक्षम ऐसे सुंदर ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। इस ग्रंथकी प्रथम आवृत्ति इसवी सन् 1960 में फाबेस गुजराती सभा-बम्बई से प्रकाशित हुईतब 'प्राक्कथन' में इस सभाके मानाह मंत्री श्री ज्योतीन्द्र ह. दवेकी बात यहाँ दोहराना अनुचित नहीं होगा. 'प्राचीन साहित्य और भाषाशास्त्र के सुप्रसिद्ध विद्वान श्री भायाणीने अत्यंत श्रमपूर्वक विद्यार्थिओं तथा अन्य अध्येताओं के उपयोग-हेतु यह ग्रंथ तैयार किया है । विशेषतः भूमिका में दी गयीं अपभ्रश साहित्य और भाषाविषयक मूल्यवान सामग्री इतने व्यवस्थित रूप में पहली बार ही दी गयी है ।' कई समयसे नितांत अप्राप्य इस अध्ययन प्रथका संवर्धित तृतीय संस्करण का यह हिन्दी अनुवाद है । इसके प्रकाशनकी अनुमति देनेके लिये हम डॉ. हरिवल्लभ भायाणी के अत्यंत आभारी हैं । इस ग्रंथ के मुद्रण का समग्र भार डॉ. भायाणी के मार्गदर्शन में श्री हरजीभाइ पटेलने (क्रिश्ना प्रिन्टरी) सम्हाला है, हम उनके भी आभारी हैं। डॉ. बिन्दु भट्टने परिश्रम लेकर हिन्दी अनुवाद तयार कर दिया उसके लिये भी हम आभार व्यक्त करते हैं ।। आशा है कि इस ग्रंथका लाभ अधिक से अधिक अध्येता लेंगे तथा हमारी संस्थाको ऐसे उत्तम प्रकाशन करनेका शुभ अवसर बार-बार मिलता रहेगा। शुभेच्छा के साथ. दिनांक १-८-९४ अहमदाबाद कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचाय नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षानिधिः के ट्रस्टीगण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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