Book Title: Apbhramsa Hindi Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 112
________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी एकवचन धुं, ज, "जा, जु, जो (जो, जिसने ) धुं, ज, "जा, जु, (जिसे, जिसको) जें, जेण, जेणं ( जिससे, जिसके द्वारा ) ज, "जा, जासु, जहो, "जाहो, जस्सु (जिसके लिए) (जिसका, जिसकी, जिसके ) जहां, जहां (जिस से). जहिं, "जाहिं (जिसमें, जिस पर ) एकवचन धुं, जु (जो, जिसने ) पुल्लिंग - ज ( जो ) ...ज, "जा, जासु, धुं, जु (जिसे, जिसको) जें, जेण, जेणं (जिससे, जिसके द्वारा ) नपुंसकलिंग - ज (जो) जो, "जाहो, जस्सु (जिसके लिए) (जिसका, जिसकी, जिसके ) जहां, जहां (जिस से) जहिं, जाहिं (जिसमें, जिस पर ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण Jain Education International बहुवचन ज, जा (जो, जिन्होंने) ज, "जा (जिन्हें, जिनको) हिं, "जाहिं, जेहिं (जिनसे, जिनके द्वारा ) ज, "जा, जहं, "जाहं (जिनके लिए) (जिनका, जिनकी, जिनके ) जहु, "जाहुं (जिन से) जहिं, "जाहिं (जिनमें, जिन पर ) बहुवचन ज, "जा, जई, "जाई (जो, जिन्होंने) ज, "जा, जई, "जाई (जिन्हें, जिनको) हिं, "जाहिं, जेहिं ( जिनसे, जिनके द्वारा ) ज, "जा, जहं, "जाहं (जिनके लिए) (जिनका, जिनकी, जिनके ) जहुँ, "जाहुं (जिन से) हिं, "जाहिं (जिनमें, जिन पर ) For Personal & Private Use Only (97) www.jainelibrary.org

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