Book Title: Anuttaropapatik Dasha
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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यति नो चेव णं अससोणियत्ताए॥१६॥धण्णसणं अणगारस्स पायंगुलियाणं अयमेयारूवे से जहा नामए कलसंगलियाति वा, मुग्गसंगलियाति वा, माससंगलियातिवा, तरुणिया छिण्हा उण्हे दिण्णा शुका लमाणी मिलायमाणी मिलायमाणी चिट्ठति, एवामेव धण्णस्स पायंगुलियाओ सुक्काओ जाव सोणियन्ताए ॥१७॥8॥ धण्णस्स जंघाणं अयमेयारवे से जहा काकजंघाइ वा, कंकजंघाइ वा टेणियालियाजंघाइ वा, जाव सोणियत्ताए ॥१८॥ धण्णस्स जाणूणं अयमेथारूवे से जहा कालिपोरेइ वा मयूरपोरेइ वा, देणियालियापोरे वा एवं जाव सोणियत्ताए ॥ १९॥ धण्णस्स उरूस्स से जहा नामए सामकरिल्लेइ वा, बोरीकरील्लेइ वा । सल्लइ० सामलि० तरुणए छिन्ने उण्हे जाब चिट्ठा, एवामेव धण्णस्स उरू जाव सोणियसाए ॥२०॥6॥ धण्णस्स कडिपत्तस्स इमेयारूवे से जहा० उपादेति वा जरग्णपादेति वा जाव सोणियसाए ॥२१॥ द्रष्टव्यम् ॥ १६ ॥ कल त्ति कलाया-धान्यविशेषाः तेपां संगलिय त्ति फलिका, मुद्गा माषाश्च प्रतीताः, तरुणय त्ति अभिनवाकोमलेत्यर्थः, मिलायमाणी त्ति म्लायन्ती-म्लानिमुपगता ॥ १७॥ काकजंघा इव त्ति काकजचा-वनस्पतिविशेषः, सा हि परि
दृश्यमानस्नायुका स्थूलसन्धिस्थाना च भवतीति तया जङ्घयोरुपमानं, अथवा काको-वायसः 'कङ्कः ढेणिकालिका च-पक्षिविशेषौ तज्जका दाच स्वभावतो निर्मासशोणिता भवतीति ताभ्यामुपमानमिहोक्तमिति ॥ १८ ॥ कालिपोरेइ त्ति काकजङ्घा-वनस्पतिविशेषपर्व मयूरढे
णिकाकालिके-पक्षिविशेषौ अथवा ढेणिकाल:-तिडः ॥ १९॥ बोरिकरिल्लेति बदरी-कर्कन्धूः, करीरं प्रत्यग्रं कन्दलं, शल्लकी शाल्मली च-वृक्षविशेपी, पाठान्तरेण सामकरिल्लेइ वा तत्र च श्यामा-प्रियङ्कः॥२०॥ कडिपत्तस्स त्ति कटी एव पत्र-प्रतलत्वेनावयवद्वय
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