Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02 Author(s): Virendrakumar Jain Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti View full book textPage 2
________________ राम, कृष्ण, बुद्ध, क्रीस्त आदि सभी प्रमुख ज्योतिधरों पर, संसार में सर्वत्र ही, आधुनिक सृजन और कला की सभी विधाओं में पर्याप्त काम हुआ है। प्रकट है कि अतिमानवों की इस श्रेणी में केवल तीर्थंकर महावीर ही ऐसे हैं, जिन पर आज तक कोई महत्त्वपूर्ण सृजनात्मक कृति प्रस्तुत न हो सकी। प्रस्तुत उपन्यास इस दिशा में, सारी दुनिया में इस प्रकार का सर्वप्रथम शुद्ध सृजनात्मक प्रयास है। यहाँ पहली वार भगवान को, पच्चीस सदी व्यापी साम्प्रदायिकत. जड़ कारागार से मुवत करके उनके निसर्ग विश्व-पुरुष । में प्रकट किया गया है। उपलब्ध स्रोतों में महावीर-जीवन के जो यत्किचि उपादान मिलते हैं, उनके आधार पर रचना करना, एक अति दुःसाध्य कर्म था। प्रचलित इतिहास में भी महावीर का व्यक्तित्व अनेक भ्रान्त और परस्पर विरोधी धारणाओं से ढंका हुआ है। ऐसे में कल्पक मनीषा के अप्रतिम धनी, प्रसिद्ध व.वि-कथाकार और मौलिक चिन्तक श्री वीरेन्द्रकुमार जैन ने, अपने पारदर्शी विजन-वातायन पर सीधेसीधे महावीर का अन्तःसाक्षात्कार करके, उन्हें रचने का एक साहसिक प्रयोग किया है। हजारों वर्षों के भारतीय पुराण-इतिहास, धर्म, संस्कृति, दर्शन, अध्यात्म का अतलगामी मन्थन करके, लेखक ने यहाँ ठीक इतिहास के पट पर महावीर को जीवन्त और ज्वलन्त किया है। मानव को अतिमानव के रूप में, और अतिमानव का मानव के रूप में एकबारगी ही रचना, किसी भी रचनाकार के लिए एक दुःसाध्य कसौटी है। वीरेन्द्र इस कसौटी पर कितने खरे उतरे हैं, इसका निर्णय तो प्रबुद्ध पाठक और समय स्वयम् ही कर सकेगा। पहली बार यहाँ शिशु, बालक, किशोर, युवा, तपस्वी, तीर्थंकर और भगवान महावीर, नितान्त मनुष्य के रूप में सांगोपांग अवतीर्ण हुए हैं। ढाई हजार वर्ष बाद फिर आप यहाँ, महावीर को टीक अभी और आज के भारतवर्ष की धरती पर चलते हुए देखेंगे। ऐतिहासिक और पराऐतिहासिक महावीर का एक अद्भुत समरस सामंजस्य इस उपन्यास में सहज ही सिद्ध हो सका है। दिक्काल-विजेता योगीश्वर महावीर यहाँ पहली बार कवि के विजन द्वारा, इतिहासविधाता के रूप में प्रत्यक्ष और मूर्तिमान हुए हैं। . इस कृति के महावीर की वाणी में हमारे युग की तमाम वंयक्तिक, सार्वजनिक, भौतिक-आत्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समस्याएँ अनायास प्रतिध्वनित हुई हैं, और उनका मौलिक समाधान भी प्रस्तुत हआ है। वीरेन्द्र के महावीर एकबारगी ही प्रासंगिक और प्रज्ञा-पुरुष हैं, शाश्वत और समकालीन हैं। · अनन्त असीम अवकाश और काल के बोध को यहाँ सृजन द्वारा ऐन्द्रिक अनुभूति का विषय बनाया गया है। ऐन्द्रिक और अतीन्द्रिक अनुभूतिसंवेदन का ऐसा संयोजन विश्व-साहित्य में विरल ही मिलता है। सूजन द्वारा आध्यात्मिक चेतना को मनोविज्ञान प्रदान करने की दिशा में यह अपने ढंग का एक निराला प्रयोग है। . वीरेन्द्र बालपन से ही अपने आन्तरिक अन्तरिक्ष और For Personal and Private Use Only शेष आखरी फ्लैप पर Jain Educational international www.jainelibrary.orgPage Navigation
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