Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ निवेदन विद्या-अध्ययनना क्षेत्रे गुजरातमां कारमो दुष्काळ प्रवर्ती रह्यो छे. प्राकृत भाषा, व्याकरण अने साहित्य- अध्ययन तथा अध्यापन करनारा विद्यार्थी, अध्यापको के जिज्ञासु केटला ? प्राकृत भाषा तुलनात्मक अथवा भाषाशास्त्रीय अध्ययन आजे आपणे त्यां रयुं छे खलं ? जेतुं प्राकृत, तेवू अपभ्रंशनुं पण. आपणी गईकाल प्रा. चन्द्रा, डॉ. भायाणी, पं. मालवणिया समेत अनेक तज्ज्ञ विद्वानोथी भरी भरी हती. आजे तेनो एकादो अवशेष पण नथी जडतो! ___ हा, परम्परागत पद्धतिथी प्राकृत व्याकरण- अध्ययन तथा ग्रन्थोनुं वांचन करनारा-करावनारा साधुओ, साध्वीओ अने जैन अध्यापको अवश्य छे; परन्तु ते बधां पिशेलना प्राकृतव्याकरणथी तथा तेना उपयोग माटेनी सज्जताथी तद्दन वेगळा-विमुख-अजाण ! ध्वनिशास्त्र, भाषाशास्त्र, भाषाना विकास तथा परिवर्तनो इत्यादि साथे तेमने कोई ज लेवादेवा नहि होवानी. कोई नवो के अजाण्यो शब्द आवे अने कोशमां ते न जडे तो ते लोको लाचार बनी रहे. आवी ज स्थिति संशोधनविद्यानी पण छे. आजे संशोधन क्या छ ? ऊंडु अध्ययन, अन्वेषण अने मौलिक तारणो के अर्थघटनो के पाठशुद्धि - आ बधुं क्यां छे ? युनिवर्सिटीना सरकारी नियमो प्रयाणे प्राध्यापके अमुक संख्यामां लेखो, निबंधो, शोधलेखो लखवाना होय अने छपावीने तेनी नकलो संस्था समक्ष

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