Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०१४
श्रीपार्श्वनाथनी अकसाथे स्तुति करी छे.
कविओ चारे स्तोत्रोना अन्ते पोतानुं नाम न लखतां पोताना दीक्षागुरु श्रीसोमसुन्दरसूरिजी- नाम ज गूंथ्युं छे, जे तेमनी गुरुभक्तिनुं सूचक छे.
चारे काव्यो पर कोई अनामी पुण्यात्माओ अवचूरि लखी छे, जे काव्यनो आस्वाद कराववामां घणी ज सहायक बने छे. काव्यो अने तेमनी अवचूरि धरावती दिव्य अक्षरोमां लखायेली प्रत पञ्चपाठी छे अने २ पानानी छे, जे मोटे भागे अवचूरिकार महात्माओ पोते ज लखी हशे अम जणाय छे. अवचूरिकार पोते रत्नशेखरसूरिजीनो उल्लेख 'महोपाध्याय' तरीके करे छे, ते सूचवे छे के श्रीरत्नशेखरसूरिजीना कोईक शिष्ये ज स्तोत्ररचनाना नजीकना समयमां अवचूरि लखी होवी जोईए.
आवां मूल्यवान स्तोत्रो प्रकाशमां लाववा बदल म. विनयसागरजी खरा अभिनन्दनना अधिकारी छे. - त्रै.मं.)
(१) , भाषात्रयसमं चतुर्विंशति-जिन-स्तवनम् (सावचूरि)
(मालिनीवृत्तम्) अमरगिरिगरीयोमारुदेवीयदेहे,
कुवलयदलमालाकोमला कुन्तलाली । सजलजलदपाली किन्नु "सन्नीलकण्ठी
धवनिवहममन्दं नन्दयन्ती जयाय ॥१॥ अवचूरिः - १. सुवर्णाद्रिगरिष्ठं यत् श्रीऋषभसम्बन्धिदेहं, तस्मिन्नर्थादंसलक्षणे । २. कुवलयदलश्रेणिश्यामा जटा । ३. सजलजलदमालेव । ४. साक्षात् सन्त एव नीलकण्ठीधवा- मयूराः तत्समूहम् । अमन्दं यथा स्यात् एवं समुल्लासयन्ती । जयाय, अस्तु इत्यध्याहारः ॥१॥
असमसमरलीला-लालसाभावभाव
च्छलपरबलहेलाभङ्गरङ्गं गमीव । करिवरपरिधारी वो विमोहावहारी,
२भवजयिविजयाभू रङ्गभूमी रमासु ॥२॥
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