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________________ जान्युआरी - २०१४ श्रीपार्श्वनाथनी अकसाथे स्तुति करी छे. कविओ चारे स्तोत्रोना अन्ते पोतानुं नाम न लखतां पोताना दीक्षागुरु श्रीसोमसुन्दरसूरिजी- नाम ज गूंथ्युं छे, जे तेमनी गुरुभक्तिनुं सूचक छे. चारे काव्यो पर कोई अनामी पुण्यात्माओ अवचूरि लखी छे, जे काव्यनो आस्वाद कराववामां घणी ज सहायक बने छे. काव्यो अने तेमनी अवचूरि धरावती दिव्य अक्षरोमां लखायेली प्रत पञ्चपाठी छे अने २ पानानी छे, जे मोटे भागे अवचूरिकार महात्माओ पोते ज लखी हशे अम जणाय छे. अवचूरिकार पोते रत्नशेखरसूरिजीनो उल्लेख 'महोपाध्याय' तरीके करे छे, ते सूचवे छे के श्रीरत्नशेखरसूरिजीना कोईक शिष्ये ज स्तोत्ररचनाना नजीकना समयमां अवचूरि लखी होवी जोईए. आवां मूल्यवान स्तोत्रो प्रकाशमां लाववा बदल म. विनयसागरजी खरा अभिनन्दनना अधिकारी छे. - त्रै.मं.) (१) , भाषात्रयसमं चतुर्विंशति-जिन-स्तवनम् (सावचूरि) (मालिनीवृत्तम्) अमरगिरिगरीयोमारुदेवीयदेहे, कुवलयदलमालाकोमला कुन्तलाली । सजलजलदपाली किन्नु "सन्नीलकण्ठी धवनिवहममन्दं नन्दयन्ती जयाय ॥१॥ अवचूरिः - १. सुवर्णाद्रिगरिष्ठं यत् श्रीऋषभसम्बन्धिदेहं, तस्मिन्नर्थादंसलक्षणे । २. कुवलयदलश्रेणिश्यामा जटा । ३. सजलजलदमालेव । ४. साक्षात् सन्त एव नीलकण्ठीधवा- मयूराः तत्समूहम् । अमन्दं यथा स्यात् एवं समुल्लासयन्ती । जयाय, अस्तु इत्यध्याहारः ॥१॥ असमसमरलीला-लालसाभावभाव च्छलपरबलहेलाभङ्गरङ्गं गमीव । करिवरपरिधारी वो विमोहावहारी, २भवजयिविजयाभू रङ्गभूमी रमासु ॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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