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________________ अनुसन्धान-६३ महदंशे संयुक्ताक्षर धरावता शब्दो के प्रयोगो तेमज श, ष, ऋ, ऐ, औ - आ अक्षर धरावतां तमाम पदो अने बीजा पण ढगलाबंध शब्दो छोडी देवा पडे छे, केमके प्राकृतमां ओवा शब्दो के प्रयोगो शक्य ज नथी. आमां पण शौरसेनीनो ख्याल करवा जतां तकारादि जेवा बीजा पण घणा शब्दो छोडवाना थाय छे. अने तेम छतां मर्यादित शब्दभण्डोळ वापरीने पण कविले जे चमत्कृतिसभर अने अर्थगौरवथी समृद्ध २५ श्लोको बनाव्या छे ते काबिले दाद छे. एक ज श्लोक जोईए - "कुवलवलयकायं कुन्दजिद्दन्तपाली च्छविभरपरिभोगं देवमल्लीपुरोगम् । तमरिहमिह सेवे वारिवाहं सवारिं, किमसमबिसकण्ठीमण्डलीलीढकण्ठम् ॥" (नीलकमल जेवी श्रीमुनिसुव्रतस्वामीनी काया अने कुन्दपुष्पोनी शोभाने य झांखी पाडे तेवी तेओनी दन्तपङ्क्ति. जाणे श्याम मेघमालानी आरपार ऊडती हंसोनी हार जोई लो! आवा सौन्दर्यनो तो हुं आशक ज थाउंने भला !) _ 'घोघामण्डन-नवखण्डपार्श्वस्तवन' शब्दचमत्कृतिथी आनन्दित करती रचना छे. कृतिना प्रशस्तिपद्य सिवायना ७ श्लोकोना चारे चरणमां 'नवखण्ड' शब्द प्रयोजायो छे. जो के दरेक श्लोक, चोथु चरण तो समान ज छे, पण अन्य त्रण चरणोमां दरेक वखते अलग-अलग सन्दर्भे 'न-व-खं-ड' अक्षरो गोठवाया छे. जेमके - 'दानवखण्डनाय॑', 'कार्शानवखण्ड', 'नव खं डयन्ते' व. कविनी कल्पनाशक्ति केटली अद्भुत हशे! ___'नवग्रहस्तुतिगर्भं पार्श्वजिनस्तवनम्' ओ द्विसन्धान काव्य जेवू छे. अमां ओक तरफ ९ श्लोकोथी पार्श्वनाथनी स्तुति करी छे, तो बीजी तरफ अमांना १-१ श्लोकथी १-१ ग्रहनी पण स्तुति थती जाय छे. आवा अनेकसन्धान काव्यो सामान्य रीते अकाक्षरी शब्दोनो वपराश, अप्रस्तुतकल्पना, अजाण्या शब्दोनो प्रयोग व.ने लीधे क्लिष्ट थई जतां होय छे. पण अत्रे कर्ताओ प्रासादिकता जाळवी राखी छे ते आश्चर्यजनक छे. 'तीर्थद्वयस्तवन' पण उपरोक्त काव्यनी जेम अनेकसन्धान ज छे. कविले तेमां अर्बुदगिरिमण्डन श्रीआदिनाथ, श्रीनेमिनाथ अने जीरापल्लीतीर्थपति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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