SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जान्युआरी- २०१४ महोपाध्याय श्रीरत्नशेखरविरचितं स्तवनचतुष्कम् (सावचूरि) सं. म. विनयसागर (तपगच्छपति श्रीरत्नशेखरसूरिजीओ (सं. १४५२ - १५१७) उपाध्यायपणामां रचेलां आ चार स्तोत्रोनुं अवचूरि साथे, म. विनयसागरजीओ घणा वखत पूर्वे हस्तलिखित प्रतना आधारे सम्पादन कर्तुं हशे तेनी छायाप्रति (Xerox ) तेओए थोडा वखत पहेलां अनु. मां छापवा माटे मोकली. सम्पादन थोडुंक अशुद्ध हतुं अने Xerox पण थोडीक झांखी हती. छतां ते वयोवृद्ध विद्वानना विद्याप्रेम प्रत्येना सद्भावथी ज स्तोत्रोनुं मूल हस्तलिखित प्रतना आधारे यथाशक्य संमार्जन करीने प्रकाशन कर्तुं छे. स्तोत्रोनो परिचय पण उपलब्ध माहितीना आधारे अंशतः आप्यो छे. श्रीरत्नशेखरसूरिजी सं. १४९३मां उपाध्याय बन्या हता अने सं. १५०२मां श्रीमुनिसुन्दरसूरिजीना हाथे तेमनी आचार्यपदवी थई हती. ओटले अ १० वर्षना गाळामां ज आ स्तोत्रोनी रचना थई हशे . तेमना नामे प्रस्तुत स्तोत्रो उपरान्त अन्य ग्रन्थो पण नोंधायेला छे : श्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति - अर्थदीपिका (सं. १४९६), श्राद्धविधिकौमुदी (सं. १५०६), आचारप्रदीप (सं. १५१६), लघुक्षेत्रसमास, हेमव्याकरणअवचूरि, प्रबोधचन्द्रोदय, रत्नचूडरास, तपगच्छगुर्वावली व. ७ प्रस्तुत स्तोत्रो आचार्यनी विद्वत्ता अने काव्यकौशल प्रत्ये अहोभाव जन्माववा माटे पर्याप्त छे. ओक ओक स्तोत्र पोतानी तद्दन अनोखी विशिष्टता धरावे छे. प्रथम स्तोत्र 'भाषात्रयसमं चतुर्विंशतिजिनस्तवनम्' प्रासादिक छे अने काव्यकलाना उत्तम नमूना समान छे, पण अनी खरी खूबीनो ख्याल आखुं स्तवन वांची जईओ, तो पण न आवे से सम्भवित छे. आ काव्यनी खूबी ओ छे के ओ 'भाषात्रयसम' छे, मतलब के आ काव्यनो प्रत्येक श्लोक संस्कृत, प्राकृत (- महाराष्ट्री ) अने शौरसेनी अत्रणे भाषामां समजी शकाय तेम छे. केमके ओमां ते ज संस्कृत शब्दो के प्रयोगो प्रयोजाया छे के जे प्राकृत के शौरसेनीमां पण स्वरादिपरिवर्तन पामता नथी. ध्यानमा रहे के आम करवा जतां Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy