Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 3
________________ 3 निवेदन संशोधन एक जवाबदारीपूर्ण प्रक्रिया छे. ए देखादेखीथी ज आवडी जाय के कोईक चोपडी के लेखो वांची लेवामात्रथी आवडी जाय तेवी प्रवृत्ति नथी. केटलाक लोको एवं मानीने चालता जोवा मळे छे के अमे जे छपावीए ते ज संशोधन गणाय. संशोधननी मान्य पद्धतिथी अनभिज्ञ, अने संशोधन माटेनी सूझबूझनो नितान्त अभाव धरावता लोको ज्यारे आ रीते वर्तता जोवा मळे त्यारे, मोटा भागे रमूज ज ऊपजती होय छे. आवा लोको एम ज माने छे के पहेलांना ग्रन्थकर्ताओए रचेली रचनामांथी भूल शोधी काढवी अने प्रतिलेखक (लहिया वगेरे)ना लेखनदोषो शोधी काढवा एज संशोधन गणाय. आवा लोको, आवी दृष्टि साथे ज, पोतानुं शोधकार्य करता होय छे, अने पोताने संशोधक गणावता रहे छे. वस्तुत: आस्थिति, अणसमज अने बेजवाबदारीनी निशानी गणाय. अत्यारे केटलाक मुनिजनोमां बे प्रकारनी भ्रान्ति प्रवर्तती जोवा मळे छे : एक संशोधन अने सम्पादन ए तो साव सामान्य काम छे; ए तो अमने आवडे ज. बे, अमारा द्वारा थतुं कार्य संशोधन ज गणाय. आ बन्ने मान्यताओ नरी भ्रमणा छे, अने आवी मान्यताओ, प्रकृतिदत्त जडता तथा दुराग्रहभर्या मानस सिवाय न सम्भवे, एटलुं तो सहेजे समजी शकाय तेम छे. आ प्रकारनी भ्रमणाओमां जीवता मित्रो द्वारा थयेल संशोधनात्मक (!) कामोने जोवानो प्रसंग हमणां वारेवारे आवतो थयो छे. भूतकाळमां आ पानां पर संशोधकनां लक्षणो विशे जे थोडीक वातो थई छे, तेना परिप्रेक्ष्यमां आ संशोधनोने तथा संशोधकोने मूलवीए, तो हेरान थई जवुं पडे तेवी परिस्थिति छे. कदाच पुनरुक्ति थती हशे तो ते करीने पण नोंधवं घटे के संशोधन ए कोई प्राचीन-अर्वाचीन सर्जक/लेखकनी भूल शोधवा-सुधारवाना मिशन साथे करवानी प्रवृत्ति नथी. संशोधन तो, पूर्वग्रह - आग्रह - जडता - संकुचित मनोवलणो इत्यादिथी पर बनेला चित्तथी, पोताना ज्ञान अने समजणमां वृद्धि थाय, अने साथे साथे,

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