Book Title: Anusandhan 2002 03 SrNo 19
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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काल अनंते ओलख्यो धर्मनाथ जगनाथो रे ।
तुम छोडी बीजा किम नमुं कुण ले बाउल बाथो रे || धर्म० ॥२॥
दातार जाणी करी आव्यो तुम चरणे सांई रे । आपवुं होय ते आपीईं विमासी रह्या कांई रे || धर्म० ||३||
जो पोतानो त्रेवडो रस्युं जिनजी विचारो रे । एकपखिणी प्रीतडी छै प्रभु निरधारो रे ॥ धर्म० ॥४॥
शिवसुख जिनचंद्र आपीइं उपशम रसना कंद रे । हीरसागर प्रभु सुख घणां दीठे परमाणंद रे ॥ धर्म० ॥५॥ इति श्री धर्मनाथ स्तवनं ॥
१. ‘तुमे' नथी.
श्रीशांतिजिनस्तवन
जीहोनी ए देशी ।
March-2002
जीहो शांति जिणेसर प्रणमई लाला शांति जिणंद सुहाय जीहो । विश्वसेन नरपति चंदलो लाला अचिरानंद लागु पाय जीहो ॥१॥ जिणेसर सांभलि मुझ अरदास | आंकणी ।
जीहो चक्री पंचमो जाणीइं लाला सोलमा एह जिणंद जीहो । धरम चक्री तुमे वडा लाला जीहो दीपे जेम दिणंद जि० ॥२॥
जीहो अभयदान देइ करी लाला बांध्युं श्री जिननाम जोहो । जीहो सकल जीव ने निरभय कर्यां लाला पाम्या पंचम गति ठाम जि० ॥३॥
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जो प्रभु ताहरी भगति सदा लाला महिर करो महाराज जीहो । जीहो सहिजे सेवक सुख करो लाला आपो अविचल राज जि० ||४||
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